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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रोमां रोलाँका प्रत्याशित पत्र रविवारको आ गया है। मैं उनके ऊपर जो बोझ डालना चाहता था, वह वे नहीं उठायेंगे। अत: इस साल मैं यूरोप नहीं जा रहा हूँ। पर तुम इस सम्बन्धमें 'यंग इंडिया'[१] के पृष्ठोंमें पढ़ोगे।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस० एन० १३२०३) की फोटो-नकलसे ।


३१३. पत्र : कर्नाड सदाशिव रावको

आश्रम
साबरमती
२४ अप्रैल, १९२८

प्रिय सदाशिव राव,

आपका पत्र मिला; बहुत पसन्द आया । अपनी पुत्रियोंको स्वयं मुझसे सम्पर्क स्थापित करने दीजिए। यदि उन्हें पर्दानशीन औरतोंसे भी बदतर नहीं होना है तो उन्हें साहसी बनना चाहिए। क्योंकि वे औरतें, जो आधुनिक तितलियाँ बनना चाहती है, मेरी निगाहमें पर्दानशीन औरतोंसे भी गई बीती हैं। और जो राष्ट्रकी वास्तविक सेविका बनेंगी, उन्हें गरीबीको वरदानके रूपमें स्वेच्छासे स्वीकार करना होगा, न कि मात्र सहनीय स्थिति मानकर ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सदाशिव राव कर्नाड

कोडाइबेल

मंगलोर

अंग्रेजी (एस० एन० १३२०२) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. देखिए " यूरोपीय मित्रोंसे ", २६-४-१९२८ ।