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४. गुजरात विद्यापीठ'

२ फरवरी, १९२८
 

मुझे विश्वास है कि जो गुजरात विद्यापीठ टूटता-सा दीखता है, जिसमें रोज-रोज तादाद घटती जा रही है और जिसकी कुछ लोग उपेक्षा करते हैं, हिन्दुस्तानके स्वराज्य आन्दोलनके इतिहास में उस गुजरात विद्यापीठका भाग प्रशंसनीय माना जायेगा।यह नहीं कहा जा सकता कि यह विद्यापीठ न होता तो बंगाल, अलीगढ़, काशी,बिहार और पंजाबके विद्यापीठ स्थापित होते या नहीं। जब गुजरात विद्यापीठ स्थापित हुआ था, तब सबकी नजर इसकी तरफ लगी हुई थी। सब गुजरातके साहसकी होड़ करनेकी इच्छा करते थे ।

इसमें जो स्नातक तैयार हुए और जिन अध्यापकोंने इसकी सेवा की उनमें से कुछ आज उसमें नहीं हैं, फिर भी वे असहयोगके झण्डेका गौरव बढ़ा रहे हैं। अगर यह विद्यापीठ टूट जाये, तो देशको नुकसान पहुँचेगा और हमपर जो आरम्भ-शूर होनेका दोष लगाया जाता है, उसकी एक और दुःखद मिसाल बढ़ जायेंगी। तमाम दुनियामें गिरी हुई जातियोंके जीवनको उज्ज्वल करनेवाली संस्थाओंपर हमले होते आये हैं। इन हमलोंसे उभर सकनेवाली संस्थाओंका जगतकी उन्नतिमें हमेशा बड़ा माग रहा है। क्योंकि आफतोंके सामने झुक जानेके बजाय जो व्यक्ति या संस्था तनकर खड़ी रह सकती है, वह दुनियाको आत्मविश्वास, स्वावलम्बन, बहादुरी, दृढ़ता आदिका पदार्थपाठ सिखाती है।

इसलिए गुजराती लोग विद्यापीठको एकाएक मरने नहीं देंगे। आचार्य आनन्दशंकर-भाईकी मददसे एक समिति मुकर्रर करके विद्यापीठने जाँच कराई थी, सो पाठकोंको मालूम ही है। तभी विद्यापीठको पक्की बुनियादपर खड़ा करनेके इरादेसे कितने ही परिवर्तन किये गये थे; इनके सिवा और भी कितनी ही दूसरी तबदीलियोंका विचार किया गया था।

तूफानी समुद्र में पड़े हुए जहाजको मताधिकारके बल पर चुने गये किसी मण्डलके हाथमें नहीं सौंपा जाता; बल्कि ऐसा मण्डल खुद ही अपने बचावके लिए नौविद्याके जाननेवालोंको उसका कब्जा दे देता है; और जरूरत होने पर वे शास्त्रज्ञ उसे पूरी तरह एक ही कर्णधारके हाथ सौंप देते हैं।

विद्यापीठकी व्यवस्थापक समितिने कुछ इसी तरहसे अपना अधिकार स्वेच्छासे एक ऐसे छोटेसे मण्डलके हाथमें सौंप देनेका साहस किया है; और इसे मतदाताओंका नहीं बल्कि सिर्फ विद्यापीठका ही विचार करना है। समितिने यह समझदारीका काम किया है। चूंकि व्यवस्थापकोंका पिछले महीनेकी २८ तारीखको पास किया हुआ प्रस्ताव महत्वपूर्ण है मैं उसे नीचे पूराका पूरा देता हूँ :

१.देखिए यंग इंडिया २-२-१९२९ भी।

२.यंग इंडिया के अनुसार यह तारीख २९ जनवरी, १९२८ ठहरती है।