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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निष्पक्ष भावसे और धैर्य से अध्ययन करेंगे तो संयुक्त राज्य, मैं स्वयं प्रवर्तक होनेके बावजूद जिसे एक अनोखा आन्दोलन समझता हूँ, उस आन्दोलनको कुछ हदतक समझ सकेगा। मेरा आशय यही है कि संक्षेपमें हमारे आन्दोलन का सार चरखे और उसके समस्त फलितार्थोंमें आ जाता है। मेरे लेखे यह बारूदकी जगह पर है। यह भारतके करोड़ों लोगोंको स्वावलम्बन और आशाका सन्देश देता है। और सचमुच जागरूक हो जाने पर उन्हें स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए उँगली भी नहीं उठानी पड़ेगी। असलम चरखेका सन्देश शोषणकी भावनाकी जगह सेवाको भावनाको प्रतिष्ठित करना है। पाश्चात्य देशोंमें शोषणका स्वर ही मुख्य है। में बिलकुल नहीं चाहता कि हमारा देश उस भावनाका अथवा स्वरका अनुकरण करे।"

मिस मेयोने इस उद्धरणका केवल पहला वाक्य ही उद्धृत किया है और उसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण व्याख्या छोड़ दी है। इसमें उनका उद्देश्य मेरा उपहास करना है। किन्तु मैं समझता हूँ कि पूरे अनुच्छेदसे मेरा आशय स्पष्ट हो जाता है और सन्देश स्पष्ट और सुबोध बन जाता है। उनके संग्रह से सम्बन्धित लेख मैंने अपनी यात्राके दौरान लिखा था । यदि उस समय मेरे पास टीपें होतीं, तो मैं उनको अवश्य उद्धृत करता और उनसे अपने लेखको और भी पुष्ट करता । फिर भी मेरा दावा है कि उद्धृत किये गये पूरे अनुच्छेदमें समाहित सन्देश उससे भिन्न नहीं हैं जो मैंने उस लेख में कहा है, जिसका खण्डन मिस मेयो करना चाहती हैं।

इसलिए जिस बातका उन्होंने खण्डन किया है, उसे यद्यपि वे एक छोटी-सी बात कहती हैं, और उनका यह कहना ठीक भी है, फिर भी मेरा यह विश्वास है कि वह उस बातका खण्डन करनेमें भी बिलकुल असफल सिद्ध हुई हैं। मेरा दावा है कि मेरी स्मृतिने साथ न भी दिया हो, तो भी मैंने उन्हें जो निश्चयात्मक उत्तर दिया है, उस पर वे कुछ नहीं कह सकी हैं और उसका जवाब नहीं दे पाई हैं। उनके पास कोई तर्क नहीं है, इसलिए उन्होंने उस छोटे-छोटे मुद्दे उठानेवाले वकील जैसा रास्ता अख्तियार किया है, जो विरोधी किन्तु अडिग गवाहसे उसकी याददाश्त के अधार पर ऐसी बातोंका जवाब ले लेता है जो जाँच करनेपर पूरी तरह सही साबित न हों; और उसे इस तरह झूठा साबित करनेका विफल प्रयास करता है। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि मिस मेयोका 'लिबर्टी 'में छपा लेख यह सिद्ध करता है कि वह एक लेखिकाके रूपमें भरोसेके लायक नहीं हैं, इतना ही नहीं बल्कि वे उचित अनुचितके ज्ञानसे हीन एक अप्रमाणिक व्यक्ति हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २-२-१९२८