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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक ही मंच पर देखकर मेरी आत्माको सन्तोष हुआ। सरकारी कालेजके विद्यार्थियोंने राष्ट्रीय कार्यके लिए कालेजसे गैरहाजिर रहकर जो साहस दिखाया, उसकी सराहना किये बिना मैं नहीं रह सकता। सारे संसार में राष्ट्रीय आन्दोलनोंको गढ़ने और आगे बढ़ाने में विद्यार्थियोंका जबर्दस्त हाथ रहता है। अगर हिन्दुस्तान के विद्यार्थी उस दिशामें कुछ कम करते तो यह बहुत ही बुरी बात होती ।

मैं अब इस बातकी ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि अगर हड़तालके बाद यथेष्ट और अनवरत काम न होता रहे, तो हड़तालकी यही महान सफलता हमारे विरुद्ध दलील देते समय काम में लाई जायेगी। लॉर्ड सिन्हाकी इस भविष्यवाणीको कि यह हड़ताल तो क्षणिक जोश था, हमें असत्य साबित करना ही पड़ेगा। हम यह भी याद रखें कि हमारे विरोधकी कुछ भी परवाह किये बिना कमीशन अपने ही रास्ते चलता जायेगा, क्योंकि उसके पीछे ब्रिटिश शस्त्र बल है। जहाँ कहीं इसे सचमुच मान नहीं मिलेगा, वहाँ कृत्रिम रूपसे इसके लिए मान पैदा किया जायेगा। क्या अछूतोंके एक नाममात्रके मण्डलने कमोशनका अपने उद्धारक के रूप में स्वागत नहीं किया था ? मेरा दावा है कि अछूतोंके इस प्रतिनिधि मण्डलको बनिस्बत मैं अछूतोंको अधिक जानता हूँ और मैं दावे के साथ यह कहने का साहस करता हूँ कि यह मण्डल अछूतोंका प्रतिनिधित्व जापानियोंके किसी दलसे अधिक नहीं करता है।

इसलिए हमें अगर पूरी तरह से बहिष्कार कराना है, तो जहाँ-जहाँ कमीशन आये, वहाँ-वहाँ बहिष्कार कराने के लिए और हो सके तो धरना देने के लिए सभी दलोंका एक संयुक्त संगठन तो होना ही चाहिए; साथ ही वहाँ राष्ट्रकी शक्तिका कुछ और भी प्रदर्शन किया जाना चाहिए। चाहे मेरा कहना अरण्यरोदन हो, चाहे वह लाख बारकी दुहराई गई बात हो, परन्तु मैं कहता हूँ कि विदेशी कपड़ेके बहिष्कारके सिवाय, देशके सामने और कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं है जिस पर तत्काल और प्रभावशाली ढंगसे अमल कराया जा सकता है। मगर सभी बड़े-बड़े कामोंकी तरह इसके लिए भी योजना बनानेकी और संगठन करने की आवश्यकता है। इस दृष्टिसे,योग्य और ईमानदार स्त्री-पुरुषोंको केवल एक इसी काम में लगकर निरन्तर और सावधानी के साथ काम करना चाहिए। यह काम सहज नहीं है। अगर सहज हो तो इससे जितने बड़े-बड़े परिणामोंकी आशाकी जाती है, वे इससे न मिलें। इस काम में सफलता पानेके लिए, पहले राष्ट्र में जो कुछ सर्वश्रेष्ठ है उसे उभारना चाहिए। मगर हम यह भी साफ-साफ समझ लें कि अगर हम इस एक कामका संगठन नहीं कर सकते तो दूसरे किसी कामका भी नहीं कर सकते।

मैं अपनी स्थिति साफ कर दूं। मैं अब भी जब-तब कुछ लिखनेके सिवाय इस राष्ट्रीय आन्दोलनके विकास में और कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। इसलिए यह लेख उन विभिन्न दलोंसे, जो राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षाके लिए मिलकर काम कर रहे हैं, नम्र अपीलके रूपमें ही लिखा गया है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-२-१९२८