पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/५१

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टिप्पणियाँ

इससे जाहिर होता है कि अभीतक अपीलकी प्रतिक्रिया बहुत कम हुई है। इन पृष्ठोंमें की जानेवाली अपीलके फलस्वरूप अक्सर जो प्रतिक्रिया होती है, वह इस बातकी द्योतक होती है कि किसी आन्दोलन विशेषको जनता किस रूपमें स्वीकार करती है। जाहिर है कि दोनों जातियोंके तनावपूर्ण सम्बन्धोंके कारण आम तौर पर पाठकों पर इसका असर नहीं हो पा रहा है। क्या मैं आशा करूँ कि जहाँ कहीं भी ऐसे स्त्री-पुरुष हैं जो हिन्दू-मुस्लिम एकतामें विश्वास करते हैं, जो हकीमजीमें एक महान देशभक्तकी हैसियतसे आस्था रखते हैं और जामियाको समर्थन देनेकी आवश्यकता मानते हैं, वे न केवल खुद जल्दीसे चन्दा भेजेंगे बल्कि अपने मित्रों और पड़ोसियोंसे भी वैसा करनेको कहेंगे ? हर छोटी बड़ी चन्देकी रकमकी इन पृष्ठोंमें प्राप्ति स्वीकार की जायेगी ।

कर्नाटक और आन्ध्र देशके मित्रों से

पूछा जा रहा है कि क्या मैंने उक्त प्रान्तोंके प्रस्तावित दौरेका विचार बिलकुल छोड़ दिया है। उत्तरमें मैं यह कह सकता हूँ कि यद्यपि मैंने श्रीयुत गंगाधरराव देशपाण्डे और देशभक्त कोंडा वैंकटप्पैयाके दबाबसे दौरा स्थगित कर दिया है, किन्तु फिर भी उसे सर्वथा छोड़ देनेका मेरा कोई विचार नहीं है। यदि मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा और ईश्वरकी ऐसी इच्छा हुई तो मैं वर्षा समाप्त होनेपर इस दौरेको आरम्भ करना चाहता हूँ । किन्तु ठीक यही होगा कि किसी खास मौसममें दौरा करनेकी आशा न बाँधी जाये। मेरा इतना आश्वासन काफी है कि मैं इन प्रान्तों में और शेष प्रान्तोंमें जल्दी ही दौरा करना चाहता हूँ, बशर्ते कि वह सम्भव हो जाये। तबतक जो लोग थैलियोंके लिए रुपया इकट्ठा कर चुके हैं वे उसे या तो मेरे पास या संगठन करनेवालोंके पास भेज दें।

पंजाबमें १८८५ में खादी

कोयम्बटूर निवासी श्रीयुत बालाजी राव विविध पुस्तकोंसे सामग्री इकट्ठी करके उसे समय-समय पर मेरे पास भेजते हैं। उनकी सामग्रीमें से मैं नीचे दी गई मूल्यवान जानकारी उद्धृत करता हूँ। यह उद्धरण १८८५ में ई० बी० फ्रांसिसके सूत और मूती कपड़ेके सम्बन्धमें लिखे गये निबन्धसे लिया गया है :'

अच्छे कार्यकर्त्तागण कत्तिनोंको मिलनेवाली कम मजदूरीसे परेशान नहीं हुए। क्योंकि जैसा लेखकने स्वयं कहा है, वे अपने अवकाशके समयमें कातती थीं और इससे उन्हें जो कुछ मिल जाता था वह उनकी अतिरिक्त कमाई होती थी । यदि अवस्थिति बदल गई है तो इसका कारण यह है कि लोगोंकी रुचियाँ बिगड़ गई हैं और विदेशी कपड़ेको दबे-छिपे ढंगसे अप्रत्यक्ष संरक्षण देकर, उसे इस दुःखी देशके सिर पर लाद दिया जाता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-२-१९२८

१. उदरण यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।