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१७. पत्र : मु॰ अ॰ अन्सारीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
११फरवरी,१९२८

प्रिय डा० अन्सारी,

आप मेरी सेहत के बारेमें चिन्ता न करें। डॉक्टर तो लोगोंको डरा ही देते हैं। जो रक्तचाप पाया गया है, इस बार उससे मुझ पर कोई असर हुआ नहीं लगता। मैं काफी ठीक चल रहा हूँ। मुझमें चल फिर सकनेकी ताकत है और मैं सिर्फ इसलिए बिस्तर पर लेटा रहता हूँ कि डॉक्टर बाध्य करते हैं और कहते हैं कि रक्तचापके कुछ मामलोंमें एकाध बार बड़ा धोखा हो जाता है; कई बार तो वे खतरनाक सिद्ध होते हैं, खासकर उस समय जब खुद रोगीको ऐसा लगता है कि रक्तचापका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है।

यह पत्र मैं अजमल जामिया कोषके सिलसिलेमें लिखवा रहा हूँ। इस समय आप तमाम बड़े-बड़े लोगोंके बीचमें हैं; मैं चाहता हूँ कि आप उन्हें किसी-न-किसी तरहसे राजी करें और उनसे [ कोषमें] चन्दा, चाहें वह कितना ही क्यों न हो, दिलवायें। मुझे आशंका है कि बहुत कम लोग खुश होकर चन्दा देंगे या फिर प्रख्यात लोगोंके दे चुकने पर देना शुरू करेंगे। यदि मैं बिस्तर पर न पड़ जाता, तो देशके इस हिस्सेके लोगोंको इसके पक्षमें करनेकी काफी कोशिश करता । यों मैंने अभीतक यह काम कर सकनेकी आशा नहीं छोड़ी है। मुझे ऐसा विश्वास नहीं है कि चारों तरफ शिष्टमण्डल भेजे जानेकी आपकी योजना सफल होगी। मैं जानता हूँ, आपका सारा समय डॉक्टरी और कांग्रेसकी सीधी कार्यवाहियोंमें लगा हुआ है; अब आपसे और समय निकालनेको कहना क्रूरता होगी। फिर भी आपको इस कामके लिए समय तो निकालना ही है ।

यदि आपने मेरा 'हड़तालके बाद " शीर्षक लेख न पढ़ा हो तो कृपया उसे पढ़ लीजिए। अगर आप इस सार्वत्रिक और सम्भवनीय, विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कारके कामको हाथमें नहीं लेते, तो स्टेच्यूटरी कमीशनके बहिष्कारसे जो शक्ति पैदा हुई है, बिलकुल व्यर्थ हो जायेगी। यदि साथ-साथ कोई ठोस कार्य न किया जाये तो हर निषेधात्मक कार्य अन्तमें निष्फल हो जाता है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०६९) की फोटो-नकलसे ।

१. देखिए पृष्ठ १५ ।