पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/९

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भूमिका

इस खण्डमें जिन पाँच महीनों (१ फरवरी, १९२८से ३० जून, १९२८) तक की सामग्री है, उनमें गांधीजी को,'सफर और दुर्वह सार्वजनिक कामोंसे'अपेक्षाकृत'फुर्सत (पृ० ३०) रही और वे ज्यादातर आश्रममें ही रहे। उन्होंने इसके थोड़े ही पहले खादी के प्रचार के लिए दक्षिण भारत का जबर्दस्त दौरा पूरा किया था। तबतक विदेशीवस्त्र बहिष्कारका शक्तिशाली अस्त्र बन जानेके कारण खादीका महत्व काफी बढ़ गया था, खादी कार्यक्रमका उपयोग अब राष्ट्रीय मांगको एक प्रभावशाली आधार देनेकी दृष्टि से किया जाना था और इसलिए गांधीजी उसे 'यदि हो सके तो मिलोंकी मददसे अथवा यदि आवश्यक हो तो उनकी मददके बिना भी (पृ० ८२) पूरा करने का संकल्प कर चुके थे। वे न केवल यह चाहते थे कि अखिल भारतीय चरखा संघ और उसके अधीन चलनेवाले संगठनोंको मजबूत किया जाये, उनका क्षेत्र बढ़ाया जाये,और खादीके काम में बालकों, स्त्रियों और पुरुषों, हिन्दुओं और मुसलमानों सभी का सहयोग लिया जाये (पृ० १८३), बल्कि वे यह भी चाहते थे कि मिलें भी अपनी कीमतों का स्तरीकरण करके, अपने मुनाफोंको घटाकर और खादीकी बिक्रीकी जिम्मेदारी लेकर बहिष्कारमें सहायता पहुँचाएँ। इस विषयमें मिलोंकी ओरसे कोई बहुत उत्साह-जनक प्रतिक्रिया नहीं हुई और गांधीजीने शीघ्र ही समझ लिया कि मिल-मालिकों के 'सलाह-मशविरेसे तत्काल कोई लाभ होनेवाला नहीं (पृ० २३१) फिर भी, 'अहिंसाके सिद्धान्तका दृढ़ विश्वासी होने के नाते,'वे मिल-मालिकों द्वारा राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाये जानेका बराबर प्रयत्न करते रहे; साथ ही उन्होंने ऐसे 'लोगोंको जो कोई युक्ति नहीं सुनते और हठपूर्वक रास्ता रोकते हैं (पृ० २३०) सत्याग्रहकी चेतावनी भी दी ।

सर जान साइमनके 'स्टेच्यूटरी कमीशन' के आनेपर देश-भरमें विरोध का जो तूफान उठा, इस खण्डमें उसकी तो सिर्फ एक गूंज ही मिलेगी, क्योंकि गांधीजी 'बहुत सोच-समझकर और बहुत ही आत्म-संयम से" उसके बहिष्कारमें सक्रिय माग लेनेसे विरत बने हुए थे। यह बात उनकी समझ में आ गई थी कि मेरे बीचमें पड़ने से जनता आन्दोलनमें जरूर आगे आयेगी और इससे आन्दोलनके उन्नायक शायद परेशानी में पड़ जायें (पृ० १५) ।

इसी तरह उस सर्व-दलीय सम्मेलन के बारे में, जिसका उद्देश्य सरकार और 'स्टेच्यूटरी कमीशन' का जबर्दस्त विरोध करना था, गांधीज़ी मनमें दुखी थे और मौन थे । सम्मेलन किसी निष्कर्ष पर पहुँचता नहीं लगता था। दस दिन बाद ही जवाहरलाल नेहरू के लिए वह बोझ असह्य हो गया था ( पृ० ६२)।मोतीलाल नेहरूको एक पत्रमें गांधीजी ने लिखा:"सारे राष्ट्र का व्यवस्थित ढंग से अपमान किया