पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/१०

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जा रहा है और फिर भी हम लोग अपने-आपको कितने हीन रूपमें प्रदर्शित कर रहे हैं" (पृ० ७२) ।

इस अवधिकी सबसे महत्वपूर्ण घटना बारडोली सत्याग्रह थी। पहला बारडोली सत्याग्रह चौरी-चौरा काण्डके बाद बन्द कर दिया गया था। यह आन्दोलन उसके छः साल बाद शुरू हुआ था । १९२८ का सत्याग्रह भी लगान बहुत अधिक बढ़ा देनेके कारण हुआ। किसानोंने इस प्रश्नकी जाँचके लिए एक निष्पक्ष न्यायाधिकरणकी माँग की। सरकार जब दुराग्रही सिद्ध हुई तो उन्होंने सत्याग्रह कर दिया औ इसने बादमें लगानबन्दीका रूप धारण कर लिया। इस आन्दोलनमें सरकारको अपनी सत्ताके प्रति चुनौती दिखाई दी और वह तुरन्त किसानोंके आत्मबलको कुचलने के लिए पूरी शक्तिसे तत्पर हो गई। अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ होने लगी, पुलिस और पठानों द्वारा आतंक फैलाया जाने लगा तथा मवेशियों और जमीनोंको जब्त करके नीलाम किया जाने लगा। लेकिन किसान, अजेय वल्लभभाई पटेलके नेतृत्व में, शान्त रहकर सत्याग्रह करते चले गये। गांधीजी इस आन्दोलनका दूरसे पथ-प्रदर्शन कर रहे थे। वल्लभभाई और विट्ठलभाईके लिए उन्होंने पत्रोंके मजमून तक तैयार किये और लोगोंकी माँगके पक्षमें जनमत तैयार किया, क्योंकि वह "अनुशासित और शान्तिपूर्ण प्रतिरोध " होने और “सामूहिक रूपसे यातनाएँ सहने"(पृ० ९८) का शिक्षण देनेके कारण सीमित और स्थानीय सत्याग्रह होते हुए भी स्वराज्यकी दिशामें एक कदम था।

हमें इस खण्डमें गांधीजीके चिन्तनकी एक गहरी और भीतरी झाँकी भी मिलती है। अखबारोंमें छपी अपनी मृत्युकी भविष्यवाणीकी रिपोर्टकी चर्चा करते हुए गांधीजीने राजगोपालाचारीको लिखा : "बहुत से लोगोंको बड़ा दुःख है कि मैं १७ तारीखको नहीं मरा...शायद मैं भी उनमें से एक हूँ। एक तरहकी मौत तो शायद मैं मर चुका। आगे देखें क्या होता है" (पृ० १२८) । १९२६ के आरम्भमें गांधीजीने स्वेच्छापूर्वक सक्रिय राजनीतिसे अवकाश ले लिया था । लगता है, दो वर्षके चिन्तन और अन्तनिरीक्षणके फलस्वरूप उनमें एक नई आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि पैदा हुई। इस अवधिमें उन्होंने 'गीता' का गहरा अध्ययन किया और उस पर आश्रमवासियोंको प्रवचन दिये।'आत्मकथा' की अपनी साप्ताहिक किश्तें लिखते हुए, उन्होंने अपने बीते जीवनका और भी अनासक्ति और विनम्रतासे सिहावलोकन किया ।जैन हॉवर्डको १२ मार्चको पत्र लिखते हुए उन्होंने कहा :"परन्तु मैंने यह सोचा था कि यदि लोग मुझे शरीफ और शान्तिप्रिय आदमी समझते हैं, तो उन्हें यह भी जानना चाहिए कि एक ऐसा समय था जब मैं सचमुच जानवर था, और फिर भी मैं स्नेहशील पति होनेका दावा करता था। एक बार एक मित्रने मुझे “पवित्र गाय और क्रूर चीतेका" मिश्रण बताया था-वह निराधार नहीं था (पृ० १०९) । 'यंग इंडिया' के एक लेख ('फिर वही चर्चा," १५-३-१९२८) में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि “जिसने मुझे युद्धमें भाग लेनेके लिए प्रेरित किया, वह एक मिश्रित