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भेंट: बारडोलीके सम्बन्धमें ए॰ प्रे॰ ऑफ इं॰ को

 

सूरत परिषद् के बाद जो विज्ञप्ति[१] प्रकाशित हुई हैं, उसे देखकर तो में चकित हूँ। उसमें वह सद्भाव और विश्वासकी भावना मुझे कहीं नहीं मिली जो सम्मानजनक समझौते के लिए आवश्यक है।

मुझ-जैसे सामान्य व्यक्तिकी बुद्धिमें तो यह बात आती ही नहीं कि लगानमें की गई वृद्धिको अतिरिक्त रकम अग्रिम जमा करवानेका सरकार इतना आग्रह क्यों कर रही है। यदि बुरा न माना जाये तो मैं कहूँगा कि यह बात बिलकुल बेतुकी है। मेरी समझ में नहीं आता कि यह महान् सरकार लोगोंसे, जो पूरी तरह उसके अधिकार-क्षेत्र और नियन्त्रणमें हैं, यह रकम अग्रिम जमा कराने की माँग कैसे कर सकती है। दूसरी ओर, यह समझना कठिन नहीं है कि जनता यह रकम अग्रिम जमा कराने के बिलकुल खिलाफ क्यों है; उसके लिए यह प्रतिष्ठाका प्रश्न है। अग्रिम जमा कराने का आग्रह छोड़ देनेसे सरकारका कुछ नुकसान होनेवाला नहीं है। विज्ञप्तिमें ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनके विषयमें काफी कुछ कहा जा सकता है, लेकिन उसके सम्बन्ध में अपने विचार में जनताके सामने किसी अन्य माध्यमसे[२] रखना चाहूँगा।

प्रतिनिधिके यह पूछने पर कि क्या आपको इस बातका भान है कि समझौता-वार्ता विफल होनेपर बारडोलीके किसानोंको बहुत गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, श्री गांधीने कहा कि बारडोलीकी जनता के लिए इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता कि वह उस प्रतिज्ञाको तोड़ दे जो उसने बहुत सोच-समझकर की है और जिसे उसने न जाने कितनी बार दोहराया है।

इसके बाद प्रतिनिधिने पूछा कि क्या आप ऐसा समझते हैं कि इस संघर्ष में लगे लोग जो तमाम कष्ट सह रहे और त्याग कर रहे हैं उससे अन्ततः बारडोलीकी जनता या देशका कोई लाभ होगा? श्री गांधीने कहा कि मैं बेशक ऐसा मानता हूँ कि लाभ होगा, और ये लोग जितना अधिक त्याग तथा बलिदान करेंगे, देश और बारडोलोकी जनताको उतना ही अधिक लाभ होगा।

 

  1. यद परिषद् १८ जुलाईको हुई थी और इसमें वल्लभभाई पटेल, अब्बास तैयबजी, शारदा मेहता, भक्तिलक्ष्मी देसाई, मोठ्बहन पेटिंट और कल्याणजी मेहताने बारडोलोके किसानों के प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे बम्बईके गवर्नरसे बातचीत की थी। गवर्नरने समझौते के लिए निम्नलिखित शर्त रखी थीं:
    "अव्वल तो यह कि या तो पूरा लगान तत्काल अदा कर दिया जाये या फिर पुराने और नये लगानमें जितनेका फर्क पड़ता है उतनी रकम 'किसानोंकी ओरसे सरकारी खजाने में जमा करा दी जाये।'
    दूसरे, लगान न देनेका आन्दोलन उठा लिया जाये।
    यदि ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिये गये तो सरकार 'सरकारी तौरपर तथ्योंका अनुमान लगाने में गलती होनेके जो आरोप हैं', उनकी जाँच करानेके लिए तैयार है। जाँच या तो कोई ऐसा राजस्व अधिकारी करेगा जिसका इस मामलेसे कोई सम्बन्ध नहीं है या किसी न्यायाधीशके साथ मिलकर कोई अन्य राजस्व अधिकारी करेगा। इसमें न्यायाधीशका कर्तव्य 'तथ्य और आँकड़ोंके विवादास्पद प्रदनोंका निपटारा' करना होगा ...।" (द स्टोरी ऑफ बारडोली, पृष्ठ १५९)।
  2. नवजीवन और यंग इंडिया, देखिए "सरकारको कुबुद्धि", २२-७-१९२८ और "सरकारसे एक निवेदन", २३-७-१९२८।
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