९४. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको
साबरमती आश्रम
२० जुलाई, १९२८
भाई घनश्यामदासजी,
आपके दो पत्र मीले हैं।
बारडोलीके बारेमें कुछ नहिं भेजा है उसमें हरज नहिं है। काफी धन मील रहा है। भीड़ [विपत्ति] होगी तब अवश्य तकलीफ दुंगा। समझोता होनेका अब कम संभव है। हुआ तो भी ठीक न हुआ तो भी ठीक। सत्याग्रह की बागडोर ईश्वर ही के हाथों में रहती है। वल्लभभाई आज यहीं हैं।
बहिष्कारके बारेमें दुबारा 'न॰ जी॰'में लिखुंगा।
मोहनदास
सी॰ डब्ल्यू॰ ६१६२ से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला
९५. भेंट: बारडोलीके सम्बन्धमें एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियासे
अहमदाबाद,
२० जुलाई, १९२८
एक प्रतिनिधि द्वारा बारडोलीकी समस्या के सम्बन्ध में श्री गांधीसे मुलाकात लिये जाने पर उन्होंने कहा कि इस विषयमें मेरे विचार वही हैं जो श्रीयुत वल्लभाई पटेलके हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह बड़े दुःखकी बात है कि समझौता वार्ताके विफल हो जानेकी आशंका है। लेकिन यदि ऐसा हुआ तो जहाँतक मैं समझ सकता हूँ, पूरा दोष सरकारका होगा।