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पत्र: अहमदाबाद केन्द्रीय जेलके अधीक्षकको


लायक माना जा सकता है। लेकिन हो सकता है कि पिछले चार वर्षोंमें कुछ नये बँगले भी बन गये हों। तुम कब कहाँ रहोगे, यह निश्चित न होनेके कारण यह पत्र तुम्हारे बम्बईके पतेपर ही भेज रहा हूँ।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३२६०) की माइक्रोफिल्मसे।

 

९७. पत्र : जी॰ वी॰ सुब्बारावको

आश्रम, साबरमती
२१ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। दुःखके साथ कहना पड़ता है कि मैं स्वर्गीय गोपालकृष्णयाके बारेमें कोई उपयोगी चीज नहीं लिख सकूंगा। अगर उनके बारेमें कुछ लिखूँगा तो कई मामलोंमें मुझे उनके आचरणकी आलोचना करनी पड़ेगी, इसलिए मैने दिवंगत आत्माके विषय में कुछ न कहना ही ठीक माना है।[१]

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ ३६२५) की फोटो-नकलसे।

 

९८. पत्र : अहमदाबाद केन्द्रीय जेलके अधीक्षकको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२१ जुलाई, १९२८

महोदय,

सत्याग्रह आश्रम के व्यवस्थापकने इसी २० तारीखका आपका पत्र मुझे देखनेको दिया। उसमें आपने बताया है कि शामको साढ़े सात बजे तीन अजनबी दो कुत्तोंके साथ जेलका मैदान पार कर रहे थे, लेकिन आपने यह नहीं बताया कि यह बात किस दिन हुई। यद्यपि पत्रके पहले दो अनुच्छेदोंमें आश्रम के सम्बन्धमें कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन तीसरेमें आश्रमके अधीक्षकसे इस मामले की जाँच करके सम्बन्धित व्यक्तियोंको यह हिदायत कर देनेको कहा है कि वे सरकारी मैदानोंमें इस तरह अनधिकार प्रवेश न करें। अन्तमें आपने धमकी देते हुए लिखा है,

 

  1. देखिए "पत्र: जी॰ वी॰ सुब्बारावको", २७-७-१९२८ भी।