११५. पत्र: वसुमती पण्डितको
[२७ जुलाई, १९२८][१]
चि॰ वसुमती,
कल चिन्तित हो उठा था इसलिए तार देना पड़ा। आज उत्तर मिल जाने से कुछ शान्ति मिली। बुखार बहुत लम्बा चला। हिम्मतसे काम लेना और घबराना नहीं। जहाँ भी जाओ उस स्थानको अपना घर मानकर वहाँ रहते हुए आवश्यक सेवा स्वीकार करनेके पाठको मत भूलना। झूठा अभिमान और झूठी शर्म हमारे शत्रु हैं। तुम्हारा पत्र मुझे प्रतिदिन अवश्य मिलना चाहिए और उसमें सभी बातें विस्तारपूर्वक लिखनी अथवा लिखवानी चाहिए। शारीरिक स्वास्थ्यकी दृष्टिसे नानी-बहनने जो सात दिनका उपवास किया था वह आज पूरा हो गया।
बापूके आशीर्वाद
कन्या गुरुकुल
गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४८६) से।
सौजन्य: वसुमती पण्डित
११६. पत्र : हेमप्रभा दासगुप्तको
२७ जुलाई, १९२८
मैं आपको क्या लिखुं? निखिलके जानेके लीये हम सब तैयार हि थे। वह तो दुःखमें से छुटा। उसको तो दीव्य जन्म होनेवाला है। ऐसा वह ज्ञानी और संयमी लड़का था। सतीशबाबुने परम शांति रखी है। उससे हम सब आश्चर्यचकित हुए हैं। वैसी हि शांतिकी आप सबके तरफसे मैं आशा करता हूं।
बापुके आशीर्वाद
जी॰ एन॰ १६५९की फोटो-नकलसे।
- ↑ डाकखानेकी मुहरसे।