पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

११७. गवर्नरकी धमकी

हिन्दुस्तानकी नौकरशाही अनुभवसे कोई बात सीखने से इनकार करती हुई जान पड़ती है। वह ऐसा व्यवहार करती है मानों वह जानती ही हो कि लोगोंपर से धमकीका असर उठ गया है। लाखों लोग ऐसे हैं जिनपर धमकीका कोई असर होता ही नहीं है, इतना ही नहीं अब एक ऐसा वर्ग पैदा हुआ है जो मरनेपर तुला हुआ है और जिसपर धमकीमें कही गई बातोंके कार्यरूपमें परिणत किये जानेका भी कोई असर नहीं होता। जिसने मौतका डर छोड़ दिया है, जिसने धन-मालका मोह त्याग दिया है, भला राजदण्ड उसका क्या बिगाड़ लेगा? जिसकी सबसे प्यारी वस्तु स्वाभिमान हो, उसपर धमकीका असर क्या होगा? अर्थात् गवर्नर साहबकी धमकी, और विंटरटन साहब द्वारा उसका पूर्ण अनुमोदन भी बारडोलीके लोगों पर कोई असर नहीं कर सकेगा। इतना ही नहीं, सुनता तो यह हूँ कि इस धमकीसे लोग और भी दृढ़ हो गये हैं।

किन्तु हमें सरकारी धमकीका विश्लेषण नहीं करना है। हमें इसका पता है कि अपनी धमकी सच्ची कर दिखलानेकी शक्ति सरकारमें है और इसे हम भूलना भी चाहें तो सरकार हमें यह भूलने नहीं देगी। हमारी बड़ाई इसीमें है कि हम यह मानकर कि सरकार धमकीके अनुसार ही काम करेगी, सरकारी कोपका स्वागत करनेको तैयार रहें। 'सावधान नर सदा सुखी' – कहावतको बारडोलीके भाई-बहन अपने दरवाजों पर लिख रखें और बराबर सावधान रहें। लड़ाईके आरम्भसे ही श्री वल्लभभाईने लोगोंको सचेत कर रखा है:

तुम्हें लड़ना हो तो संकट सहन करने पड़ेंगे। सरकार जब्ती करेगी, जमीन कुर्क करेगी, तुम्हारा माल मिट्टीके मोल बेच डालेगी, तुम्हें तुम्हारी जमीनसे बेदखल कर देगी, और अगर वह तुमपर गोलियोंकी बौछार कर दे तब भी तुम पीठ मत दिखलाना, गोलियोंको छातीपर फूलके समान सहना।
जिन्होंने ये वचन याद रखे होंगे, उन्हें अधिक चेतावनीकी जरूरत नहीं है।

किन्तु हमारा सम्बन्ध सरकारके कोपके साथ नहीं है। क्रोध करना राजाकी इजारेदारी है। सरकारके क्रोधके जवाबमें हमें क्रोध नहीं करना है। सत्याग्रहीको क्रोध करनेका अधिकार ही नहीं है। क्रोधको हमें अक्रोधसे जीतना है। सरकारके क्रुद्ध वचनोंसे हमें सत्यका मार्ग नहीं छोड़ना है। वह क्रोध करे या न करे, हमारी माँग तो एक ही हो सकती है। सरकार ज्वालामुखीका लावा उगलती रही है। सूरतमें जारी की गई समझमें न आने लायक सरकारी विज्ञप्ति ही गोकि उसका अन्तिम वचन समझी जाती है, तो भी समझौतेकी बातोंकी भनक हमारे कानोंमें अभी तक पड़ती ही रहती है। इस विषयकी भी हम चिन्ता न करें कि इसमें सरकारका हाथ है या नहीं। किन्तु समझौतेका अगर एक भी द्वार अभी खुला हुआ हो तो उससे