१२२. पत्र: छगनलाल जोशीको
३० जुलाई, १९२८
इसे दफ्तरके कागजोंमें रख देना। इसके सम्बन्धमें यदि कुछ कहना चाहो तो लिखना। अन्तिम विषयके बारेमें कार्यकारी मण्डलकी बैठकमें विचार करना ठीक होगा।
बापू
गुजराती (एस॰ एन॰ ११८०४) की माइक्रोफिल्मसे।
१२३. पत्र: वल्लभभाई पटेलको
३० जुलाई, १९२८
तुम्हारा पत्र मिला। तुम यह जान लो कि तुम मुझे जब भी बुलाओगे, मैं तुरन्त और उसी दिन रवाना होनेको तैयार बैठा हूँ। तुम मुझे शीशीकी चौदह दिनकी रेत खत्म होनेके पहले, अर्थात् रविवारसे पहले ही बुलाना चाहते हो न? यदि मेरा यह सोचना ठीक हो तो महादेवको आज भेजनेकी कोई जरूरत नहीं रह जाती। वह पूर्णतः स्वस्थ हो गया है यह अभी नहीं कहा जा सकता। उसकी तबीयत अच्छी हो या खराब, वह मेरे साथ तो आयेगा ही। किन्तु यदि तुम उसे तत्काल वहाँ बुलाना चाहो तो तार देना। फिर वह कल ही रवाना हो जायेगा। अब उसकी ऐसी हालत नहीं है कि वह जा ही न सके। वह सँभलकर बैठता-उठता और चलता है। मेरा हेतु तो यह है कि जितने दिन उसे रेलके हचकोलोंसे बचाया जा सकता है, बचाया जाये।
मजदूरोंकी पाठशाला के सम्बन्धमें क्या करना चाहिए, इस पर मैं कल सोच-विचार करूँगा। कृष्णलाल यहाँ पहुँच गया है। बहुत-सा पैसा जो प्रान्तीय समितिके पास पड़ा है, वह तो भले वहीं पड़ा रहे। वह उसका जो करना चाहे सो करे। मेरा विचार यह था कि आश्रमको उस रकमको अपने अधिकारमें ले लेना चाहिए। मैंने अपना यह विचार अभी बदला नहीं है, किन्तु अगर हम समय रहते मिले तो इस बारे में विचार-विमर्श करेंगे। फिलहाल तो तुम्हारा एक पैर रकाबमें है और कौन जानता है कि तुम कब सवार हो जाओगे।