पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१४१

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१२०. पत्र: जेठालाल जोशीको

२९ जुलाई, १९२८

भाईश्री जेठालाल,

यदि फलाहार किया जाये तो उसे उपवास नहीं कहा जा सकता। उपवासका उद्देश्य शरीर-शुद्धि अथवा मनकी शुद्धि होता है या दोनों होते हैं। मनकी शुद्धिमें उपवासका हिस्सा बहुत-कम है। शेष प्रश्नोंके उत्तर तो तुम्हें नियमावली[१] में मिल जायेंगे।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती (जी॰ एन॰ १३५२) की फोटो-नकलसे।

 

१२१. पत्र : वसुमती पण्डितको

२९ जुलाई, १९२८

चि॰ वसुमती,

इस बार तुम्हारी बीमारी बहुत लम्बी चली। तुम्हारी खाँसी कैसी है? मुझे हर वक्त ऐसा लगता रहता है कि आश्रममें होनेवाले उपचार और हवासे तुम्हें जल्दीसे-जल्दी आराम पहुँच सकता है। किन्तु तुम्हें तो वहाँ दृढ़तापूर्वक जमे रहना है। बहुत अधिक दवाएँ न पियो तो अच्छा। किन्तु यह सब लिखनेके बावजूद मैं नहीं चाहता कि तुम बरबस वहाँ रहो। यदि तुम्हारी कभी यहाँ आनेकी इच्छा होने लगे तो लिखना। तुम्हारे स्वास्थ्यके बारेमें मुझे रोज खबर मिलनी चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

विद्यावतीजी से कहना कि उनका पत्र मुझे मिल गया है।

चि॰ वसुमतीबहन
कन्या विद्यालय

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४८७) से।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

 

  1. आश्रमवासियोंके लिए स्वास्थ्य-रक्षा सम्बन्धी नियमोंकी पुस्तिका।