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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसी हद तक उसे भूल बैठी है। अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना और जितना अध्ययन कर सको उतना करना। रामायण पढ़ना जारी रखना और धुनाई और कताई तो है ही।

चि॰ सन्तोक और रुखीबहन इस सप्ताह के अन्तमें वहाँ पहुँचेगी। उनसे मिलती रहना। समय-समय पर मुझे पत्र लिखती रहना।

तुम सभी बहनोंको

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४९०७) से।

सौजन्य: हरि-इच्छा कामदार

 

१२८. पत्र: नारणदास गांधीको

१ अगस्त, १९२८

चि॰ नारणदास,

मीराबहनने उत्तम प्रकारकी पाँच तोले पूनियाँ बनाकर मुझे दी हैं। ये पूनियाँ जिस खाते में जमा करना चाहो उसमें जमा करके बहन राजकिशोरीके नामे चढ़ा देना। ये पूनियाँ मैंने उसे दे दी हैं।

बापू

गुजराती (एस॰ एन॰ ११८०६) की फोटो-नकलसे।

 

१२९. रक्षा नहीं, सेवा

यद्यपि अखिल भारतीय गो-रक्षा संघकी (गत २५ जुलाईको होनेवाली) बैठकका विज्ञापन 'यंग इंडिया' और हिन्दी तथा गुजराती 'नवजीवन' में भी कर दिया गया था और हालाँकि सदस्योंको–यहाँ तक कि चन्दा देनेमें चूक करनेवाले सदस्योंको भी – परिपत्रकी प्रतियाँ व्यक्तिगत रूप से भेज दी गई थीं, फिर भी बैठक में शायद एक दर्जन से अधिक सदस्य शामिल नहीं हुए, और एक दर्जनमें भी अधिकांश आश्रम में रहनेवाले लोग ही थे। इन पृष्ठोंमें प्रस्तावका जो मसविदा प्रकाशित किया गया था और उक्त प्रस्तावको बादमें जिस रूप में बैठकमें सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया उसके प्रास्ताविक अंशके पक्षमें यदि किसी प्रमाणकी आवश्यकता थी तो उपस्थित सदस्योंकी इस विरल संख्याने उसका एक जीता-जागता प्रमाण प्रस्तुत कर दिया। बैठकने संशोधनोपरान्त प्रस्तावको जिस रूप में स्वीकार किया, उसका पूरा पाठ नीचे दे रहा हूँ: