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रक्षा नहीं, सेवा

 

चूँकि अखिल भारतीय गो-रक्षा संघ अपने जिस अखिल भारतीय स्वरूपका दावा करता आया है, उसके अनुरूप जनताने न तो उसकी ओर ध्यान दिया है और न उसे उतनी सहानुभूति ही दी है; और चूंकि इसकी प्रवृत्तियाँ संघके उद्देश्योंका धीरे-धीरे प्रसार करने और विशेषकर संघके उद्देश्योंके अनुसार सत्याग्रह आश्रममें एक दुग्धशाला और एक चर्मालयके संचालन में सहायता देने तक ही सीमित रही हैं; और चूंकि चन्दे और अनुदान मुख्यतः केवल उन्हीं भाइयोंसे मिलते रहे जिनकी इस प्रयोगमें विशेष रुचि है; और चूँकि इतनी-सारी गोशालाएँ और पिंजरापोल, जिनसे संघके प्रयत्नोंके प्रति प्रचुर उत्साह दिखाने और उसकी अधीनस्थ संस्थाएँ बन जानेकी आशा की जाती थी, वैसा करनेमें सर्वथा असमर्थ रहे हैं; इसलिए संघके वर्तमान सदस्योंका निर्णय है कि इस संस्थाको भंग कर दिया जाये और इसे किसी भी रूपमें कायम न रखते हुए, अपेक्षाकृत विनम्र नाम गो-सेवा संघ अपनाया जाये तथा संघके कामकाज, उसके कोष तथा सम्पत्तिकी व्यवस्था और नियन्त्रणका दायित्व सदाके लिए निम्नलिखित सदस्योंकी स्थायी समितिको सौंप दिया जाये:

मो॰ क॰ गांधी (अध्यक्ष), रेवाशंकर जगजीवन झवेरी (कोषाध्यक्ष), जमनालालजी बजाज, बैजनाथजी केडिया, मणिलाल वल्लभजी कोठारी, महावीरप्रसाद पोद्दार, शिवलाल मूलचन्द शाह, परमेश्वरीप्रसाद गुप्त, दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर, विनोबा भावे, छगनलाल खुशालचन्द गांधी, छगनलाल नाथुभाई जोशी, नारणदास खुशालचन्द गांधी, सुरेन्द्रनाथ, चिमनलाल नरसिंहदास शाह, पन्नालाल बालभाई झवेरी, यशवन्त महादेव पारनेरकर और वालजी गोविंदजी देसाई (मन्त्री); और इस समितिको संस्थाका पैसा खर्च करने, उक्त प्रयोगोंका संचालन तथा नये प्रयोग करने, किसी सदस्यकी मृत्यु या उसके त्यागपत्र देनेपर रिक्त होनेवाले स्थानको भरने, बहुमत से किसी सदस्यको निष्कासित करने तथा अन्य प्रकारसे विगत संघके उद्देश्योंको पूरा करनेके लिए काम करने एवं इस संस्थाके संचालनके लिए इसका संविधान तथा नियमादि बनाने और उनमें समय-समय पर आवश्यक संशोधन करनेकी पूरी सत्ता दी जाये।

प्रकाशित मसविदेमें अखिल भारतीय संघके स्थान पर जो अपेक्षाकृत बहुत छोटी संस्था बनाई जानेवाली थी, उसका नाम 'गो-रक्षा समिति' सुझाया गया था। लेकिन श्रीयुत जमनालालजी की पैनी दृष्टिसे इस नामकी असंगति नहीं छिप सकी। उन्होंने ठीक ही कहा कि यह छोटी-सी संस्था, जिसके अधिकांश सदस्योंकी कोई ख्याति-प्रसिद्धि नहीं है, गायकी रक्षा करने-जैसे महान् कार्यका दायित्व लेनेका दम्भ नहीं भर सकती, वह तो पूरी विनम्रतासे अपनी शक्ति-भर गायकी सेवा करनेका ही प्रयत्न कर सकती है। इसलिए उन्होंने यह उपयुक्त नाम 'गो-सेवा संघ' सुझाया। सभी उपस्थित सदस्योंने एक बेहतर नामकी तरह इसका स्वागत किया।

पाठकोंको यह सूचित कर दूँ कि इस समितिके अधिकांश सदस्य आश्रमवासी हैं और आश्रमवासियोंमें भी केवल उन्हींको सदस्य बनाया गया है जो या तो वास्तवमें दुग्धशाला और चर्मालय-सम्बन्धी प्रयोगका संचालन कर रहे हैं या जिनकी इसमें विशेष रुचि है। शेष सदस्य ऐसे हैं, जो पूरे हृदससे यह मानते हैं कि इसी

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