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१४१. पत्र: डॉ॰ वि॰ च॰ रायको[१]

३ अगस्त, १९२८

प्रिय डॉ॰ विधान,

मैं देखता हूँ कि अमेरिकी वाणिज्य-दूतके पत्रके बारेमें आपके प्रश्नका उत्तर देना ही मैं भूल गया। निस्सन्देह यह सब किसीकी मनगढन्त है। मैं नहीं जानता कि एस्टेल कूपर कौन है या नाजीमोवा कौन है?

वल्लभभाईने मुझे बारडोली बुला लिया है; मैं आपको यह पत्र वहींसे लिख रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

डॉ॰ विधान राय
३६, वेलिंग्टन स्ट्रीट
कलकत्ता

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ २७८७) की फोटो-नकलसे।

 

१४२. पत्र : डी॰ एफ॰ मैकक्लीलैंडको[२]

स्वराज आश्रम, बारडोली
३ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र

पत्र और साथ में भेजे कागजके[३] लिए धन्यवाद। उत्तर देनेमें देर करनेके लिए क्षमा करेंगे। मैं बहुत व्यस्त था।

 

  1. गांधीजी ने यह पत्र डॉ॰ रायके २६ जुलाई के उस पत्र (एस॰ एन॰ १३६५१) के उत्तर में लिखा था, 'जिसके साथ' डॉ॰ रायने उन्हें अमेरिकी वाणिज्य दूत द्वारा भेजे गये एक पत्रकी नकल भेजी थी। अमेरिकी महावाणिज्य दूत द्वारा गांधीजी को भेजे गये पत्र तथा उसके उत्तरके लिए देखिए "पत्र: राबर्ट फ्रेजरको", १०-८-१९२८।
  2. मेकक्लीलैंडके २३ जुलाई, १९२८ के पत्रके (एस॰ एन॰ १३४८५) उत्तरमें। "कमिशन ऑन इंटरनेशनल जस्टिस ऐंड गुडविल ऑफ द फेडरल काउन्सिल ऑफ चर्चेज ऑफ क्राइस्ट इन अमेरिका" के मन्त्री डॉ॰ गलिकने मेकक्लीलैंडसे पूरी तरह जाँच-पड़ताल करके यह बतानेको कहा था कि असली सवाल जातिगत भेदभावका है या निषेधात्मक नीतिका। मैकक्लोलैंडने अपने पत्र में गांधीजी से इसी सवालपर अपनी राय देनेका अनुरोध किया था।
  3. इसमें संयुक्त राज्य अमेरिकाके नागरिकोंसे एशिवाइयोंपर लगे निषेधोंको समाप्त करनेके लिए प्रवास-कानूनोंमें संशोधन कराने की अपील की गई थी।