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१९७. टिप्पणियाँ
कन्याओंका त्याग

देहरादून कन्या गुरुकुलसे श्रीमती विद्यावतीदेवीने जो पत्र लिखा है उसका सार नीचे दे रहा हूँ:[१]

उक्त हुंडी तीन सौ से ज्यादा की है और उनमें से दो सौ रुपये तो छात्राओंके त्यागका परिणाम हैं। मैं इन बालिकाओंको धन्यवाद देता हूँ। ईश्वर उनकी सेवा-भावना बनाये रखे।

 

विद्यापीठको बड़ा दान

श्री नगीनदास अमुलखरायने राष्ट्रीय शिक्षामें सदा रस लिया है। उन्होंने उसके लिए समय-समय पर दान भी दिया है। अब उन्होंने इसके लिए एक लाख रुपये दानमें दिये हैं। उन्होंने इतनी बड़ी रकम मेरी इच्छाके अनुसार विद्याकी वृद्धिके लिए भेजी थी और मैंने यह रकम उनकी सम्मतिसे विद्यापीठको दे दी है एवं उसकी व्यवस्थाके लिए पाँच प्रतिनिधि नियुक्त कर दिये हैं। मैं इस दानके लिए भाई नगीनदासको धन्यवाद देता हूँ। मेरा ऐसा विश्वास है कि हम विद्यापीठके द्वारा जो कार्य करना चाहते हैं, उसके लिए जितना दान दिया जाये उतना ही कम है। आज हम विद्यापीठके कार्यका परिणाम अपनी स्थूल दृष्टिसे भले ही न देख सकें; किन्तु एक दिन ऐसा आयेगा जब राष्ट्रके विकास में विद्यापीठके भागको सभी लोग देखेंगे, क्योंकि उसका उद्देश्य शुद्ध है और उसके विकास में निःस्वार्थ सेवक संलग्न हैं।

मगनलाल गांधी-स्मारकको बड़ी सहायता

नेपाणी और गोंदियाके बड़े व्यापारी श्री मूलजी सिक्काने श्री मणिलाल कोठारीकी मार्फत दस हजार रुपये इस स्मारकके लिए दिये हैं। इसके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। उन्होंने खादीके प्रति अपना प्रेम कई बार सिद्ध किया है। इस स्मारक-निधिमें रुपया धीरे-धीरे आ रहा है। स्वभावतः लोगोंका ध्यान और दान बारडोलीकी ओर खिंच आता था। इसलिए मैं इसके सम्बन्धमें कुछ लिखता नहीं था। अब बारडोली प्रकरणका पूर्वभाग समाप्त होनेसे और श्री मूलजी सिक्काकी उदारताका निमित्त उपस्थित हो जानेसे मैं खादीप्रेमियों और स्वर्गीय मगनलालकी सेवाओंको समझनेवाले सज्जनोंका ध्यान इस स्मारककी ओर आकर्षित करता हूँ।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १२-८-१९२८

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। लेखिकाने कन्या गुरुकुलको छात्राओंकी ओरसे एक हुंडी भेजी थी। छात्राओंने एक मासतक फल और मिठाईका त्याग करके यह रकम जमा की थी।