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यंत्रोंका उपयोग

नहीं देते। कुछ लोग अपवाद-रूपमें सुधार करनेके लिए प्रयत्नशील हैं; लोग उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होते। सुधार करनेवाले साधुओंमें इतना चरित्रबल नहीं होता कि उनका प्रभाव लोगों पर पड़े। यह सच है कि यदि इस साधु-वर्गका उद्धार हो तो इनके जरिये दूसरोंका उद्धार होगा। किन्तु उस वर्गमें आज साधुके बदले असाधु व्यक्ति घुसे हुए हैं और बहुत-से तो धर्मके नामपर अधर्म या अन्ध-विश्वासका प्रचार करते हैं।

उस ४२ वर्षके आदमीको, जो एक पत्नीकी जीवितावस्था में दूसरीसे विवाह करना चाहता है, समझानेका काम मुश्किल है। उसे कौन समझाये कि सन्तति-जनन धर्म नहीं है। मनुष्यका धर्म एक स्त्रीसे सन्तुष्ट रहना है। पुत्रकी उम्रके जितने बालक दिखलाई पड़ें, उन्हें पुत्र माननेकी भावना पैदा करनी चाहिए। हिन्दुस्तानके समान दरिद्र देशमें तो अनेकों बालक माँ-बापके बिना मारे-मारे फिरते हैं। ऐसी स्थिति में बिना पुत्रवाले अगर ऐसे एक-एक बालकको अपनाकर पालें-पोसें, तो वे पुण्य कर्म करेंगे और विषय-भोगमें लिप्त हुए बिना पुत्र पानेका लाभ उठायेंगे। दत्तक लेने की प्रथा हिन्दू धर्म में प्रचलित और प्रसिद्ध है।

[गुजराती से]

नवजीवन, १२-८-१९२८

 

१९९. यंत्रोंका उपयोग

स्वर्गीय मगनलालने मुझे बहुत-से समाजोपयोगी पत्र लिखे थे। किन्तु अपने स्वभावानुसार मैं उन्हें फाड़ डालता था। मैंने यह सोचा ही नहीं था कि वे मुझसे पहले ही चले जायेंगे। उनके देहावसानके कोई १५ दिन पहलेका लिखा हुआ एक पत्र बचा रह गया है। उसका उपयोगी भाग मैं नीचे देता हूँ:[१]

इन दोनों बातोंकी आलोचना विचार करने लायक है। हमें चाहे जिस प्रदर्शनीमें कूद पड़ने की आवश्यकता नहीं है। प्रदर्शनी में आनेवाली प्रत्येक चीजके बारेमें ज्ञान और विवेकबुद्धि होनेपर ही लोग उसका सदुपयोग करेंगे। पूरी जानकारी प्राप्त किये बिना अपने कुछ पुराने घरेलू यन्त्रोंको त्याग देनेसे हमारा कितना नुकसान हुआ है, इसका हिसाब कौन लगा सकता है? जैसे यह कहना एक बेहूदी बात मानी जायेगी कि पुराना सभी-कुछ अच्छा था, उसी तरह यह कहना भी बहुत बुरा है कि पुराना सभी-कुछ बेकार है। यन्त्रका विरोध कोई नहीं करता। विरोध तो यन्त्रके दुरुपयोग, अति उपयोगका है। चेतन शक्तिसे चलनेवाले यन्त्रोंपर १५ प्रतिशत चुंगी और जड़ शक्तिसे चलनेवाले यन्त्रोंपर चुंगी ५ प्रतिशत है, यह मुझे तो मालूम था ही नहीं; बहुतसे पाठकोंको भी यह बात मालूम न होगी। किन्तु इस पक्षपातके ज्ञानसे

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें कृषि प्रदर्शनियोंमें बेचे जानेवाले औजारों तथा यन्त्रोंकी उपयोगिता पर सन्देह प्रकट किया गया था और उनपर कम चुंगी लगानेकी सरकारी नीतिकी आलोचना की गई थी।