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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वराज्य देखने की इच्छा करनी ही चाहिए। और इसलिए तुम्हें अपने अंतरमें उतरकर देखना चाहिए कि जिस समुदायको तुम सुधारना चाहते हो, उसके लिए तुम्हारे मनमें सच्चा प्रेम, सच्ची सहानुभूति है या नहीं? उनमें किसीका माथा दुखे तो तुम्हें अपना सिर दुखनेके समान कष्ट होता है या नहीं? उनके पाखाने मैले हों तो उन्हें साफ करनेको हम तैयार हैं या नहीं?

स्वराज्य लेना सहज है

इन सभी रचनात्मक कामोंके लिए इतने स्वयंसेवक काफी नहीं है। हमारी ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि सरदारने कहा नहीं कि अमुक काम होना चाहिए, और वह तुरन्त हो जाये। वह काम भले बरतन मांजनेका हो या पाखाना साफ करनेका हो या मोटरमें बैठनेका हो — सभी काम समान प्रेमसे ही होने चाहिए। अगर हममें यह योग्यता हो तो मुझे इसमें कोई शंका नहीं है कि जितनी आसानीसे हम यह कर-वृद्धिको लड़ाई जीत सके हैं, उसी आसानी से स्वराज्य भी ले सकेंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १९-८-१९२८

२०३. भाषण: सूरतमें[१]

[१२ अगस्त, १९२८][२]

किसी सत्याग्रहीके लिए इस प्रसंग पर यह कहनेसे अधिक उपयुक्त और कुछ नहीं हो सकता कि बारडोली सत्याग्रहकी विजयके लिए केवल ईश्वरका ही धन्यवाद और स्तुति करनी है। वास्तव में हमें इससे अधिक कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। लेकिन मैं जानता हूँ कि इससे हमें सन्तोष नहीं होनेवाला है, क्योंकि अभीतक हमारे हृदय में यह विश्वास नहीं उतर पाया है कि हम सब उसके हाथ में साधन-मात्र हैं और वह जैसा चाहता है, हमारा वैसा उपयोग करता है। हमने अभीतक अपने-आपको ईश्वरको समर्पित कर देनेका गुण नहीं सीखा है। मनुष्य आज भी अंशत: मनुष्य है और अंशतः पशु। सच तो यह है कि वह पशु अधिक है, और फलत: केवल ईश्वरकी ही प्रशंसा करनेसे उसके अहंकी तुष्टि नहीं होती। वास्तविकता यह है कि ऐसे अवसरोंपर उसे याद करके हम कुछ ऐसा महसूस करते हैं, मानो उस पर अहसान कर रहे हों। इसलिए अपने प्रकृत स्वभावके अनुसार हम अपने सरदारको, उनके साथियों और स्वयंसेवकोंको तथा बारडोलीके स्त्री-पुरुषोंको बधाई दे सकते हैं। अपने सहयोगी कार्यकर्ताओंके विश्वासपूर्ण सहयोगके बिना अकेले वल्लभभाई इस लड़ाईको नहीं जीत सकते थे। लेकिन इसी प्रकार हमें परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय,

 

  1. यह "१९२१ को याद कीजिए" शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था और इसके प्रारम्भमें सम्पादकीय टिप्पणी इन शब्दोंमें दी गई थी: "नीचे बारडोली-विजय-समारोहके अवसरपर सूरत में दिये गये गांधीजी के भाषणका सार दिया जा रहा है।"
  2. १४-८-१९२८ के बॉग्वे क्रॉनिकलसे।