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भाषण: बारडोलीमें – २

 

यह तो बहुत अच्छा हुआ कि बारडोलीकी लड़ाईके दौरान हिन्दू, मुसलमान, पारसी सब एक रह सके। किन्तु इससे क्या हम यह मान सकते हैं कि सभी सदाके लिए एक-दिल हो गये हैं? एकता होने में सरदारकी योग्यता और चतुरताके अलावा अब्बास साहब और इमाम साहबका यहाँ रहना भी एक कारण है। किन्तु अभी यहाँ यह स्थिति नहीं मानी जा सकती कि हिन्दुस्तान में अन्यत्र चाहे जितना झगड़ा हो, परन्तु यहाँ तो उसके छींटे भी नहीं पड़ सकते।

इन सभी सवालोंको हल किये बिना स्वराज्य नहीं आनेवाला है। विलायत से स्वराज्यका कानून बनकर आ जाये तो उससे हमें स्वराज्य नहीं मिलनेवाला है। किसानों पर भला उसका क्या प्रभाव पड़ेगा? प्रजाको क्या लाभ पहुँचेगा? सच्चा स्वराज्य तो तभी आया कहा जायेगा जब हम अपना सारा कामकाज स्वयं चला सकें और इन मुश्किलोंको स्वयं सुलझा सकें।

स्वयंसेवककी नीति

यहाँ जो स्वयंसेवक रहे हैं, उन्होंने प्रजासे मिला हुआ धन कृपणतासे खर्च किया है या खुले हाथों? अपने प्रति उदार होना बहुत बड़ा दोष है। उदार दूसरेके प्रति बनना चाहिए। जब स्वयंसेवक अपने प्रति कृपण और दूसरेके प्रति उदार होंगे, तभी उनके और प्रजाके सम्बन्ध ठीक रहेंगे। मैं मानता हूँ कि हमने जो खर्च किया है, उसमें कोई फिजूलखर्ची नहीं थी। किन्तु यदि हम यह सिद्ध कर सकें कि इस विषयमें हमने पूरा संयम बरता है तो मैं बहुत खुश होऊँगा। मैं खुश तब होऊँगा जब देखूंगा कि देशके दूसरे भागोंमें स्वयंसेवक ऐसे अवसरों पर जो करते हैं उसकी तुलनामें तुम्हारा व्यवहार बढ़-चढ़कर है।

हमारा जीवन कैसा हो?

हमारा देश दुनिया में सबसे गरीब है और फिर हमारी सरकार, अमेरिकाको छोड़कर, और सब देशोंसे अधिक उड़ाऊ। यहाँके अस्पतालों में इंग्लैंडके हिसाबसे खर्च होता है। स्काटलैंडके अस्पतालोंमें भी इतना खर्च नहीं होता। कर्नल मैडॉकने ही मुझसे कहा था कि जिस तरह यहाँपर एक बार पट्टीमें बाँधा गया कपड़ा फेंक देते हैं, उस तरह स्काटलैंडमें नहीं चल सकता। वहाँ तो उसे धोकर फिरसे काममें लाते हैं। इग्लैंडको यह सब सोहता है। वहाँवाले घर छोड़कर बाहर निकल पड़े हैं। फिर ऊपरसे उन्हें हिन्दुस्तानके जैसा खुला क्षेत्र लूटनेके लिए मिल गया। किन्तु हमारे खर्चका सही स्तर क्या होना चाहिये, इसका निश्चय तो यह देखकर ही किया जा सकता है कि हमारे आदमियोंको पहनने, ओढ़नेको क्या मिलता है। उस हिसाबसे हमें और कितनेकी जरूरत है — इसका विचार करके तुम अपना खर्च चलाओ। अगर हम ऐसा न करेंगे तो अन्तमें हार जायेंगे।

प्रजा-प्रेमकी कसौटी

जिनमें धीरज और श्रद्धा होगी वे तो ये सब काम चलाते ही रहेंगे। मेरे समान जो लोग मृत्युके कगारपर बैठे हुए हैं, जो एक सालके भीतर ही स्वराज देखनेकी आशा करते हैं उनकी यह आशा शायद सफल न हो, मगर तुम्हें तो अपनी जिन्दगी में