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२८३. भाषण: गूंगों और बहरोंकी शालामें

अहमदाबाद
७ सितम्बर, १९२८

इस शालाके साथ मेरा सम्बन्ध सन् १९१५ से है। सेठ मंगलदास और श्री प्राणशंकरजी के अनुरोधसे अनेक कामोंके होते हुए भी मैं यहाँ आया हूँ। यह तो गूँगों और बहरोंकी एक छोटी-सी शाला है, किन्तु मैंने हजारों गूंगों और बहरोंकी शाला चलानेका तथा अज्ञानके कारण उन्हें जो अभाव सहने पड़ते हैं, उन्हें दूर करनेका काम अपने हाथमें लिया है। सेठ मंगलदास-जैसे श्रीमान् व्यक्ति इस शालाको छोटी-सी धनराशि दानमें देकर अपना कर्तव्य पूरा हुआ नहीं मान सकते। ऐसी शाला तो अहमदाबादका कोई एक सेठ भी आसानीसे चला सकता है। अहमदाबादमें ऐसी एक नहीं, अनेक शालाएँ चलानेकी शक्ति है। ईश्वरने हमें वाणी और आँखें दी हैं; उसकी इस कृपाका उपकार हम गूँगों और बहरोंकी ऐसी सेवा करके चुका सकते हैं। श्री प्राणशंकरने शालाकी रिपोर्ट पेश की किन्तु यह नहीं बताया कि इस शालाका जन्म कैसे हुआ। उनका अपना एक पुत्र बहरा और गूँगा था। उन्हें लगा कि उसे शिक्षा तो देनी चाहिए। तदनुसार उन्होंने उसे शिक्षा देनेकी व्यवस्था की। और उसमें स्वार्थके साथ परमार्थको भी जोड़ दिया। इस तरह यह शाला अस्तित्वमें आई। स्वार्थके साथ लोकसेवाका ऐसा योग एक साधारण बात होनी चाहिए। किन्तु अहमदाबादमें जहाँ सभी लोग पैसा जोड़नेके धन्धेमें लग गये हैं, स्वार्थके साथ परमार्थका साधन करनेकी यह साधारण बात समझाना भी कठिन होता है। श्री प्राणशंकरने आंकड़े पेश करते हुए बताया है कि ७० हजार गूँगों और बहरोंके लिए इस प्रदेशमें केवल तीन शालाएँ हैं। तथा भारतमें जो दो लाख गूंगे और बहरे हैं, उनमें से केवल पाँच सौके लिए ही ऐसी शालाओंकी व्यवस्था है। इससे स्पष्ट है कि उनकी शिक्षाके लिए जितना प्रयत्न हमें करना चाहिए, उतना प्रयत्न हम नहीं कर रहे हैं। हम दान देकर उनका पेट भरनेकी व्यवस्था तो कर देते हैं, किन्तु हम उनकी शिक्षाके लिए कोई प्रयत्न नहीं करते। एक कहावत है कि एक आलसी आदमीका भार दो आदमियोंको ढोना पड़ता है। हमें इन बहरों और गूँगोंको ऐसा आलसी नहीं बनाना चाहिए। उन्हें ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जिससे कि वे अपनी जीविका कमा सकें। अहमदाबादको ऐसी शालाके लिए बाहर जाकर मदद लेनेकी जरूरत नहीं होनी चाहिए। उलटे, अहमदाबादको ही बाहरसे आनेवाले सुपात्र अभ्यागतोंको दान दे सकना चाहिए। अहमदाबादके विषयमें एक अन्य बात पर भी मैं आप सबका ध्यान खींचना चाहता हूँ। गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटीके लिए डॉ॰ हरिप्रसाद द्वारा लिखित एक पुस्तक अभी मेरे पढ़नेमें आई है। इस पुस्तकमें वे कहते हैं कि हिन्दुस्तान में अहमदाबादकी मृत्यु-संख्या सबसे अधिक है। और जबकि इस सम्बन्धमें हिन्दुस्तानको पहला स्थान प्राप्त है तो यह कहनेकी तो कोई