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त्योहार कैसे मनाने चाहिए?

 

लोक-सेवकके सम्मुख काम करनेके लिए लोक-श्रद्धाका असीम क्षेत्र मौजूद है। वल्लभभाई इस बातको समझ गये हैं। उन्होंने लोगोंसे कहा कि सरकारसे अहिंसात्मक युद्ध करना धर्म है। लोग इसे धर्म जानकर उनके पीछे चले और उन्होंने सत्याग्रहमें सचमुच धर्मके दर्शन किये। वे इससे तीर्थ यात्राका शुद्ध अर्थ समझ गये। सच्ची यात्रा हृदयके भावपर निर्भर है। सच्ची यात्रा लोक-कल्याणकी भावनासे कष्टोंका स्वागत करने और उन्हें सहन करनेमें है।

पाठक देखेंगे कि मैंने अमरनाथके यात्रियोंके कष्ट-निवारणके निमित्त कोई सहायता नहीं मांगी। मैंने उनके लिए दुःख भी प्रकट नहीं किया। वे यात्री सहायता ले ही नहीं सकते। उन्हें जो थोड़ी-सी सहायता चाहिए वह उनको वहीं मिल जायेगी। जो मर गये सो मर गये। जो बचे वे नीचे पहुँचकर कष्ट-मुक्त हो गये। ऊँचे-ऊँचे पर्वतशिखरों पर चढ़नेवाले अनेक लोगोंकी दृष्टिसे अमरनाथका यह अनुभव स्पष्ट ही एक सामान्य घटना है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १६-९-१९२८

 

३१९. त्योहार कैसे मनाने चाहिए?

बम्बईसे पर्युषणके[१] निमित्त दो भाइयोंने ७५ रु॰ की हुंडी हम जिस काममें चाहें उसमें उपयोग करनेके लिए भेजी है। इसका उपयोग अन्त्यज भाई-बहनोंके लिए होगा। सामान्य तौरपर हम त्योहार मनाते समय पैसा अपने ऊपर मौज-शौक, खाने-पीने और खिलाने-पिलानेमें बरबाद करते हैं। उसके बदले इन भाइयोंने जो नीति ग्रहण की है और दूसरे जिन भाइयोंके दृष्टान्त 'नवजीवन' में दिये जाते हैं, उनकी नीति ग्रहण करने योग्य है। मरण, विवाह, जन्म इत्यादिके प्रसंगमें जो धूमधाम होती है और दावतें दी जाती हैं, अगर उनमें लगनेवाला पूरा-पूरा या अधिकांश द्रव्य बचाया जाये और बचे हुएका आधा सार्वजनिक कामोंमें दिया जाये तो धर्म और अर्थ, स्वार्थ और परमार्थ दोनों ही सधें। बहुतोंको तो इसमें केवल लोकलाज ही बाधक पड़ती है। जो ऐसी लोकलाजके भूतसे नहीं डरते और जिन्होंने यह वस्तु समझ ली है, वे ऊपरके दृष्टान्तका अनुकरण करें, यह बात वांछनीय है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १६-९-१९२८

 

  1. एक जैन पर्व।