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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और लगभग उन सत्तर हजार कतैयोंके जीवनमें लिखा जा रहा है, जिनकी जिन्दगी में चरखेने आशाकी ज्योति जगा दी है। यदि हम शहरी सभ्यताके विनाशकारी मोहपाशमें न फँसे हुए होते तो हमारा हृदय यह अनुभव करता कि मिल-जुलकर जागरूकता और सच्ची लगनसे ठोस कार्यके रूपमें किये गये थोड़ेसे प्रयत्नसे ही चरखेको भारतके घर-घरमें पहुँचाया जा सकता है। एक चरखेसे जितनी कमाई होती है उसे, मिसालके तौरपर, दस करोड़से गुणा कर दीजिए तो जो परिणाम आयेगा वह चरखेके कट्टरसे-कट्टर विरोधीको भी उसकी उपयोगिताका कायल कर देगा। मगर हो सकता है, वह किसी तरह कायल होनेको तैयार ही न हो और कहे, "आपका कहना गणित के सवालकी दृष्टिसे तो ठीक है, लेकिन व्यावहारिकताकी दृष्टि से बिलकुल गलत।" खैर, समझाया तो उसीको जा सकता है जो समझनेको तैयार हो। मगर सच्चे कतैयेमें असीम धैर्य होना चाहिए। वह कभी हिम्मत नहीं हारता। इसलिए इन पत्रलेखक भाई द्वारा पूछे सवालका जवाब शायद यह होना चाहिए: "चरखेकी खोज आज भी जारी है।" मैं जानता हूँ कि एक-न-एक दिन इसकी खोज पूरी होगी, क्योंकि देशमें कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस खोजको सम्पन्न करानेके लिए अपने प्राणतक देनेको तैयार हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २०-९-१९२८

 

३२५. सच्ची और झूठी गो-रक्षा

जो लोग भारतमें गो-पूजाके मर्मको जानना चाहते हैं, उन सबको मैं पुरअसर ढंगसे लिखे इस लेखको[१] पढ़नेकी सलाह देता हूँ।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २०-९-१९२८

 

३२६. टिप्पणियाँ

बृहस्पतिवार [१७ सितम्बर, १९२८]

गोधरामें हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा

बुधवारको गोधरासे मुझे एक पोस्टकार्ड मिला, जिसमें यह बताया गया है कि पर्युषण त्योहारके अवसरपर हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच झगड़ा हो गया और उसमें श्री वामनराव मुकादम, श्री पुरुषोत्तमदास शाह तथा कुछ अन्य हिन्दुओंको गम्भीर चोटें आईं। आज (गुरुवारको) यह लिखते समय तार मिला है कि श्री पुरुषोत्तमदासका स्वर्गवास हो गया। मैं अपनी इस असमर्थतासे परिचित हूँ कि मृतात्माके कुटुम्बियोंके प्रति समवेदना प्रकट करनेके अलावा मैं कुछ नहीं कर सकता

 

  1. प्यारेलाल नैयर द्वारा लिखित इस लेखके अंशोंके लिए देखिए परिशिष्ट ४।