पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३४२

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३३६. पत्र: एमी टरटोरको

२१ सितम्बर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके पत्र और लिननके सुन्दर कपड़ेके लिए धन्यवाद। यहाँ जो कुछ किया जा रहा है, उसका एक नमूना साथमें भेज रहा हूँ।

आपकी प्रार्थनाओंके लिए भी मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। हमारे बीच हुआ पत्र-व्यवहार में श्री एन्ड्रयूजको[१] भेज रहा हूँ।

हृदयसे आपका,

एम॰ एमी टरटोर
कैमोलिया, ४७ सीएना
इटली

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४३९८) की माइक्रोफिल्मसे।

 

३३७. पत्र: जेठालाल जोशीको

आश्रम, साबरमती
२१ सितम्बर, १९२८

भाई जेठालाल,

कामवासनाको जीतने का उपाय 'भगवद्गीता' में बताया गया है। यह उपाय है ईश्वरकी कृपाकी प्राप्ति और यह ईश्वरकी आराधनासे ही मिलती है।

विद्यापीठमें रहने के बारेमें तुम काकासाहबसे मिलना। वहाँ अधिकतम वेतन ७५रु॰ दिया जाता है। तुम यदि इतनेमें रह सको तो शायद काकासाहब तुम्हें विद्यापीठमें ले लें। मेरे विचारानुसार तो ब्रह्मचर्य-व्रतका पालन किये बिना आश्रम में रहा ही नहीं जा सकता।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती (जी॰ एन॰ १३४४) की फोटो-नकल से।

 

  1. देखिए "पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्यूजको", २१-९-१९२८।