पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३४१

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३३४. पत्र: धन्वन्तरिको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२१ सितम्बर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके पत्र मिले। छात्र संघको मैं जो सन्देश भेज सकता हूँ, वह यह है:

"आप सरकारसे या आपकी राहमें बाधा डालनेवाली किसी भी शक्तिसे न डरें। आप आगे बढ़ें और अपने तथा उन करोड़ों मेहनतकश लोगोंके बीच एक सुदृढ़ सम्बन्ध कायम करें जो शिक्षा शब्दका अर्थ तक नहीं जानते।"

हृदयसे आपका,

श्रीयुत धन्वन्तरि
मन्त्री, लाहौर छात्र-संघ, लाहौर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५३१) की फोटो-नकलसे।

 

३३५. पत्र: कृष्णदासको

२१ सितम्बर, १९२८

प्रिय कृष्णदास,

तुम्हारा पोस्ट कार्ड मिला। . . .[१] तो बड़ा पाजी आदमी है। उसका यह कहना झूठ है कि वह यहाँसे कलकत्तातक पैदल चलकर तुमसे मिलने गया। वह इधर कई जगह गया है और उनमें से एक बृन्दावन भी है। वहाँसे उसने यह लिखा कि उसकी व्यवस्था लगभग हो गई है। वह दिलका अच्छा है, लेकिन भरोसा करने लायक बिलकुल नहीं।

राजेन्द्र बाबू यूरोपसे लौटनेपर यहाँ आये थे। उन्हें मैंने रामविनोदके बारेमें लिखा तुम्हारा पत्र[२] दिखाया। उनका विचार है कि इस सम्बन्धमें कुछ करना आवश्यक होगा।

श्रीयुत कृष्णदास

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६८९) की माइक्रोफिल्मसे।

 

  1. नाम छोड़ दिया गया है।
  2. ३० अगस्तका पत्र; देखिए "पत्र: कृष्णदासको", १०-९-१९२८।