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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अतिरिक्त यदि भविष्य में कुछ अन्य दिन खोज लिये जायें तो वे भी ठीक। इसलिए यदि सब लोग तुम्हारी तरह अखण्ड चरखा चलाने लगें तो प्रति-दिन अपना जन्म दिन मनाये जानेपर भी मैं कुछ नहीं बोलूँगा। ऐसा लगता है किशोरलालको बम्बई अनुकूल नहीं आया। फीनिक्समें मणिलाल और सुशीला एक-दूसरेमें ओतप्रोत हो गये जान पड़ते हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ६६७६) की फोटो-नकलसे।

 

३४७. पत्र: शौकत अलीको

साबरमती
२४ सितम्बर, १९२८

प्रिय भाई,

महादेव अभी-अभी शिमलासे लौटा है। उसने बताया है, आपने अखबारोंमें यह लिखा है कि मैंने शुएबको नेहरू कमेटी में न आने देनेके लिए कुछ भी उठा नहीं रखा। आपके और डॉ॰ अन्सारीके बीच चल रहे विवादकी ओर मैं ठीक ध्यान नहीं देता रहा हूँ। बस, अखबारोंमें प्रकाशित आपका एक पत्र पढ़ा है, सो भी सरसरी तौर पर। इसीलिए आपका वह शगूफा मेरी नजरसे रह गया। खैर, मेरे लिए तो यह जानकारी बिलकुल नई है कि मैंने शुएबको कमेटीमें न आने देनेकी कोशिश की। मुझे तो यह भी याद नहीं आता कि मैंने उनके या दूसरोंके बारेमें क्या-कुछ कहा। मैं तो सिर्फ इतना ही जानता हूँ कि मैंने शुएबको किसी चीजसे अलग रखनेकी बात कभी सोचीतक नहीं। उनकी ईमानदारी और स्वतन्त्र रूपसे निर्णय लेनेकी शक्तिका मैं इतना कायल हूँ कि उनको कभी किसी चीजसे अलग रखनेकी इच्छा मुझमें आ ही नहीं सकती और आपको तो मेरा स्वभाव मालूम होना चाहिए था। मैं अपने विरोधियोंको भी किसी चीजसे कभी अलग नहीं रखता। और अगर अलग रखना चाहता हूँ तो वैसा साफ कह भी देता हूँ। आपने कैसे सोच लिया कि मैं शुएबको किसी उद्देश्यसे अलग रखना चाहता था?

अगर यह सिर्फ आपकी निजी भावनाकी बात है तो उस भावनाको तो समय और मेरा भावी आचरण ही दूर कर सकता है।

महादेवसे यह किस्सा मालूम होनेके बाद मुझे लगा कि आपकी गलतफहमी दूर कर देना – बशर्ते कि मेरी बातोंसे वह दूर हो सके – आपके प्रति मेरा कर्त्तव्य है।

हाँ, मैं यह जरूर कहूँगा कि डॉ॰ अन्सारीके नाम लिखा आपका जो एकमात्र पत्र मैंने पढ़ा, वह मुझे अच्छा नहीं लगा। मुझे वह बिलकुल अनावश्यक जान पड़ा। लेकिन उसके सम्बन्धमें आपसे कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगा। मैं मानता हूँ कि आपमें इतनी शालीनता हैं कि अगर आपको अपनी भूल दिखाई दे तो आप उसे