पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मनुष्यको सबसे अधिक ध्यान जीवनके आत्मिक पक्षका रखना चाहिए। इस बातको सर्वोपरि महत्त्व देते हुए उसे अपनी शक्तियोंका जायजा लेना चाहिए, यह तय करना चाहिए कि जिस समाजमें वह रहता है उस स्थानीय समाजकी विशिष्ट आवश्यकताओंकी पूर्तिमें वह कौन-सा काम करके सबसे अधिक सहायक हो सकता है, और फिर उसे अपनी शक्ति-भर उन आवश्यकताओंकी पूर्तिमें लग जाना चाहिए।

प्र॰ हमारे आजके कार्यक्रममें शिक्षाके क्षेत्रमें धर्म और चरित्रको क्या महत्त्व दिया जाना चाहिए?

शिक्षा, चरित्र और धर्म इन तीनोंको समानार्थक शब्द मानना चाहिए। सच्ची शिक्षा चरित्र-निर्माणमें बराबर सहायक होती है और ऐसा कोई भी सच्चा धर्म नहीं है जो चरित्रके निर्माणपर जोर न दे। कैसी शिक्षा दी जाये, यह बात तय करते समय समग्र जीवनको ध्यान में रखकर चलना चाहिए। बहुत-से विषयोंको कंठाग्र कर लेना और बहुत-सी किताबें पढ़ लेना शिक्षा नहीं है। उन तथाकथित शिक्षा-पद्धतियोंमें मेरा कोई विश्वास नहीं है, जो चरित्र-बलसे रहित विद्वान् तैयार करती हैं।

पाश्चात्य राष्ट्रोंके लिए सैन्यवादका उपयुक्त विकल्प क्या हो सकता है?

सैन्यवादका मतलब तत्त्वतः अहंका पोषण है। इसलिए मैं चाहूँगा कि इसके स्थानपर आत्मनिग्रहको अपनाया जाये।

लेकिन 'आत्मनिग्रह' का मतलब क्या है?

इसका मतलब वही है जो ईसा मसीहने लगाया था। अर्थात् यह कि "जो अपना जीवन उत्सर्ग कर देगा वही उसे प्राप्त भी करेगा।"

आज जो दुनिया-भरमें विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायोंके बीच घोर विरोधका वातावरण दिखाई दे रहा है, उससे निकलनेका क्या उपाय है?

उदारता। हमें दूसरोंके प्रति सहिष्णुता और सम्मानका व्यवहार करना सीखना चाहिए। प्रत्येक धर्म किसी-न-किसी सीमातक मनुष्यकी आध्यात्मिक आवश्यकताकी पूर्ति करता है। अगर किसी धार्मिक कृत्य, उदाहरणके लिए घंटा बजाने से मुझे खीझ होती हो तो मुझे उसको बन्द करवा देनेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि यह दूसरे लोगोंकी एक आवश्यकताकी पूर्ति करता है और ऐसा सोचकर मुझे उस स्थानसे दूर हो जाना चाहिए जहाँ घंटा बजाया जाता है।

मैंने इस प्रश्न पर अपने विचार सार्वजनिक रूपसे व्यक्त करना बन्द कर दिया है। फ्रांसीसी भाषामें यह कहावत है कि 'अपनी सफाई देनेका मतलब अपनेको दोषी बताना है।' सो मैं मानता हूँ कि मेरा सन्देश दूसरोंको बराबर उपदेश देते रहने से जितना प्रभावकारी होगा, उससे कहीं अधिक प्रभावकारी मेरे चुप रहनेसे साबित होगा। लेकिन जहाँ सत्य और न्यायका प्रश्न है, वहाँ निराश होनेकी कोई जरूरत नहीं है। दुनिया ठीक रास्तेपर ही चल रही है। जब आप यह विचार करेंगे कि सम्पूर्ण कालके सन्दर्भमें हमारा मर्त्य जीवन छोटे कतरेके समान है तो आप यह समझ