३६१. पत्र: प्रफुल्लचन्द्र रायको
२ अक्टूबर, १९२८
भारतकी गरीबीके बारेमें प्रोफेसर सी॰ एन॰ वकील द्वारा 'यंग इंडिया' में लिखी गई लेख-माला[१] साथमें भेज रहा हूँ। प्रोफेसर वकीलने मुझे लिखा था कि आप यह लेख-माला देखना चाहते हैं। ये लेख जिन अंकोंमें छपे थे, उन सबके आसानी से उपलब्ध न होनेके कारण इनके संग्रहमें कुछ समय लग गया।
आशा है, आप पूर्णतः स्वस्थ होंगे।
हृदयसे आपका,
कलकत्ता
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५३९) की फोटो-नकलसे।
३६२. पत्र: नानकचन्दको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२ अक्टूबर, १९२८
आपका पत्र पाकर हर्षित हुआ। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप स्वस्थ हैं। अब आपको बलिष्ठ, स्वस्थ और अधिक दमदार बनना चाहिए। वहाँ आपको जीवनकी सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त हैं, पर आपको बड़ी सख्तीके साथ उनसे अपने-आपको वंचित रखना चाहिए और यहाँ आनेकी बात सोचने से पहले मनमें दृढ़ संकल्प करना चाहिए और शरीरको बलिष्ठ बना लेना चाहिए। आश्रमके जीवनका कुछ अनुभव आप कर ही चुके हैं। आपको जो भी चीज ज्यादा अच्छी लगी हो, उसपर आप अपने यहाँ अमल कर सकते हैं।
हृदयसे आपका,
मार्फत-शामलाल, एडवोकेट
रोहतक
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५४०) की माइक्रोफिल्मसे।
- ↑ देखिए "टिप्पणियाँ", १२-७-१९२८ का उप-शीर्षक "क्या हम और भी गरीब होते जा रहे हैं?"