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३६४. पत्र: कल्याणजी मेहता और कान्तिको

[२ अक्टूबर, १९२८][१]

भाईश्री कल्याणजी,

तुम्हारा और कान्तिका पत्र मिला। मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। तुमने दूध देकर ठीक किया। वैरको हमें प्रेमसे ही जीतना है। कान्तिके सम्बन्धमें मुझे विस्तृत समाचार देते रहना।

चि॰ कान्ति,

तुमने खूब किया। अपने मनको ऐसा ही कोमल बनाये रखना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ २६८१) की फोटो-नकलसे।

 

३६५. कल्याणजी मेहताको लिखे पत्रका अंश

[३ अक्टूबर, १९२८ को या इसके पूर्व][२]

महात्मा गांधीने सूरत के एक कांग्रेसी कार्यकर्ता, श्री कल्याणजीको सूरतके दंगोंके बारेमें एक पत्र लिखा है। गांधीजी ने उसमें कहा है कि दंगेमें (कांग्रेसी स्वयंसेवक) कावितीके[३] जख्मी हो जानेका उनको कोई दुःख नहीं है, पर वे ऐसे दंगोंमें सहायताके तौरपर कुछ कर सकनेकी असमर्थतापर दुःखी हैं। गांधीजी लिखते हैं:

परन्तु मेरा जीवन तो इसी एक आशापर टिका हुआ है कि ऐसी दुर्बलतासे ही नया बल पैदा होगा।

गांधीजी ने श्री कल्याणजीसे अनुरोध किया है कि वे उनको हर रोज पूरा विवरण भेजते रहें और मुसलमानोंके प्रति अपने मनमें भी कोई आक्रोश पैदा न होने दें। अन्तमें गांधीजी लिखते हैं:

 

  1. डाककी मुहरसे।
  2. यह समाचार "अहमदाबाद, ३ अक्टूबर" की तिथि-पंक्तिके अन्तर्गत प्रकाशित हुआ था।
  3. सम्भवतः 'कान्ति'; देखिए पिछला शीर्षक।


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