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३. शुद्ध व्यवहार

बम्बई खादी-भण्डारसे भाई विठ्ठलदास जेराजाणी लिखते है:[१]

ऐसे बहुतसे दृष्टान्त दिये जा सकते हैं जिनसे यह सिद्ध करके दिखाया जा सकता है कि ऐसे व्यवहारसे अन्तमें व्यापारीको फायदा ही होता है। फिर भी बहुतसे व्यापारी अनीतिके मार्गको ही अपनाते हैं। इसका कारण धनी बननेकी जल्दबाजीके सिवाय दूसरा नहीं है। किन्तु खादी-सेवक या खादी बेचनेवाले को तो अटूट धैर्य रखना है। सत्य, धैर्य और श्रद्धाके सिवाय खादीका दूसरा सहारा नहीं है। इसलिए खादी-भण्डारोंको भाई जेराजाणीका सुझाव याद रखना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, १-७-१९२८

 


४. टिप्पणियाँ
व्याख्याकी पूर्ति

एक पाठक सत्याग्रहाश्रमकी नियमावलिकी[२] टीका करते हुए अहिंसाकी निम्नलिखित व्याख्या सुझाते हैं:

अहिंसाका तात्पर्य है सूक्ष्म जंतुओंसे लेकर परमात्मा तक किसीको भी दुःख न पहुँचानेकी भावना। यह अर्थ 'नवजीवन'में प्रकाशित अर्थसे कहीं अधिक विस्तृत है। क्योंकि परमात्माको अनुचित व्यवहार—बुरे विचारों—से दुःखी करना भी हिंसा ही नहीं बल्कि महा हिंसा है और अनेक अहिंसाधारी इस बातको भूल जाते हैं।
फिर आत्मघात भी महा हिंसा है। तो भी हमारे आसपास आत्मघातकी हृदय बेधक घटनाएँ बराबर होती ही रहती हैं। शायद लोग ऐसा समझते होंगे कि आत्मघातका सम्बन्ध तो अपनेसे ही है और इसलिए हम इसके लिए स्वतन्त्र हैं और इसमें गुनाह-जैसा तो कुछ है ही नहीं। अथवा आ पड़नेवाले अन्याय या दुःखको धीरजसे सहन कर सकनेकी शक्तिकी कमीसे ऐसी घटनाएँ घटती होंगी। इसलिए अहिंसा के नियममें आत्मघातके सम्बन्धमें भी स्पष्ट उल्लेख हो तो जन-समाजका अधिक हित होनेकी आशा है।

 

  1. पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। कोई मराठा मजदूर भण्डारसे खादीका कुर्ता खरीदकर ले गया था किन्तु वह एक महीने में ही फट गया इसलिए उसे दूसरा नया कुर्ता दे दिया गया था। इससे भण्डारपर उस मजदूरका विश्वास जमा और फलत: वह बादमें आकर एक कोट खरीदकर ले गया।
  2. देखिए खण्ड ३६, पृष्ठ ४१९-३१।