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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कर भूल जाते हों तो यह बेगार टालना हुआ। मगर गुजरात विद्यापीठमें यह तो हिन्दीके लिए भी कहा जायेगा। हिन्दी अथवा उर्दूके बारेमें दिलचस्पी उत्पन्न करनेका उपाय तो परमात्मा जाने, मगर मुझे इसमें जरा भी शंका नहीं है कि राष्ट्रकी उन्नतिके लिए यह ज्ञान अत्यावश्यक है।

प्रश्न: विद्यार्थियोंकी स्वतन्त्रता पूर्णतः सुरक्षित रहे और उनके स्वाभाविक रुझानमें किसी तरहकी रुकावट न आये, इसलिए शिक्षकोंको तटस्थ, निराग्रही रहना चाहिए। विद्यार्थियोंसे किसी तरहके नियम, टेव, सिद्धान्त या सद्गुणका आग्रह न रखते हुए, और अपनी हृदतक उनको निभानेकी जिम्मेदारी मानते हुए और स्वयं तटस्थ रहकर शिक्षा देनेका आदर्श कई जगह रूढ़ होता जाता है। आप इस आदर्शको कहाँ तक स्वीकार करते हैं?

उत्तर : ऊपरके प्रश्नमें निहित आदर्शका समर्थन और विरोध दोनों सम्भव हैं। अगर मूल बातकी रक्षा न हो तो प्रश्नमें निहित बातका विरोध ही किया जाना चाहिए और अगर मूल बातकी रक्षा हो सकती हो तो विद्यार्थियोंको पूरी तरह स्वतन्त्र छोड़ा जा सकता है और शिक्षक इतना तटस्थ रह सकता है कि वह वर्गमें जाकर सो जाये। विद्यार्थियोंकी स्वतंत्रताकी रक्षा करनेवाला शिक्षक विद्यार्थीके जीवनमें घुलमिल जानेकी शर्तपर जैसा चाहे करे। मैं तो शिक्षकसे अखाके शब्दोंमें यह कहूँगा:

सूतर आवे त्यम तुं रहे, ज्यम त्यम करीने हरीने लहे।

आदर्श शिक्षक के पास इसके सिवाय न तो कोई दूसरा आदर्श था और न होना चाहिए।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १-७-१९२८

 

१. यानी "जैसी सुविधा हो वैसा रह, मगर चाहे जैसे हरिको प्राप्त कर।