पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४५३. पत्र: जे॰ बी॰ पेनिंगटनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२६ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। आपने जिस पुस्तकका जिक्र किया है, काश उसे पढ़नेका समय मुझे मिल जाता।

गरीबीकी समस्याके सिलसिलेमें मुझे यही कहना है कि क्या ही अच्छा हो कि आप भी उस भारतके दर्शन कर सकें जिसे मैं जानता हूँ। मुझे पूरा यकीन है कि तब भारतकी गरीबीके आप जो कारण मानते हैं उन्हें तो आप बदलेंगे ही, उसके बारेमें आपकी दृष्टि भी तुरन्त बदल जायेगी। आपकी आलोचना मैंने श्री वकीलको भेज दी है।[१]

आशा है, आपकी उमरके अभी अनेक वर्ष शेष हैं।

हृदयसे आपका,

जे॰ बी॰ पेनिंगटन महोदय
३, विक्टोरिया स्ट्रीट
३ वेस्ट मिन्सटर, साउथ-वेस्ट

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४४०४) की फोटो-नकलसे।

 

४५४. पत्र: सर डैनियल एम॰ हैमिल्टनको

२६ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके पत्रके लिए धन्यवाद। मैं इसकी एक प्रति सर पुरुषोत्तमदासके पास भेज रहा हूँ।

आपने देखा होगा कि मैंने ‘यंग इंडिया’ में आपका निबन्ध प्रकाशित किया है। अनेक अर्थशास्त्री मित्रोंमें उसके प्रति रुचि जाग्रत हुई है। आशा है कि उसकी कमसे-कम एक आलोचना तो अवश्य मिलेगी।

  1. पेनिंगटनने लिखा था कि सी॰ एन॰ वकीलने भारतकी निर्धनताके एक मुख्य कारण―हिन्दू उत्तराधिकार कानूनके फलस्वरूप छोटे-छोटे टुकड़ोंमें भूमिके बँटते जानेके तथ्यपर ध्यान नहीं दिया है।