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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

आशा है कि आपके लेखवाला ‘यंग इंडिया’ का अंक आपको मिल गया होगा।

हृदयसे आपका,

सर डैनियल हैमिल्टन
बालमाओआरा, बाईकीले
रॉस शायर, इंग्लैंड

अंग्रेजी (एल॰ एन॰ १४४१८) को माइक्रोफिल्म से।

 

४५५. पत्र: डब्ल्यू॰ एच॰ पिटको

२६ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

इतने लम्बे अरसेके बाद, वह भी आपके बिलकुल बदले हुए हालातमें[१] लिखा गया आपका पत्र पाकर बहुत खुश हुआ।

मैं आपकी बातसे पूर्णतया सहमत हूँ कि श्री कृष्ण पिल्लेकी[२] मृत्युसे बड़ी हानि पहुँची है।

त्रावणकोरमें अस्पृश्यताकी समस्या अब भी हल नहीं हो पाई है। हाँ, अस्पृश्यता क्रमशः दूर हो रही है, हालाँकि उसकी गति बहुत ही मन्द है।

आशा है, आप और श्रीमती पिट दोनों वहाँ आनन्दपूर्वक होंगे।

हृदयसे आपका,

डब्ल्यू॰ एच॰ पिट महोदय
लिडिगटन
स्वीडन, विल्ट्स

अंग्रेजो (एस॰ एन॰ १४४२३) की फोटो-नकलसे।

 
  1. पिट अप्रैल १९२८ तक त्रावणकोरमें पुलिस कमिश्नरके पदपर रहे थे। उन्होंने अपना दिनांक १५ जूनका पत्र (एस॰ एन॰ १४४२२) इन शब्दोंके साथ शुरू किया था: “प्रिय महात्माजी, मैं अब एक नागरिक-मात्र रह गया हूँ, अधिकारियोंके आचरणके नियमोंका बन्धन अब नहीं रह गया है; इसलिए मैं आपको अब श्री गांधीभर कहने की बजाय आपके विरुदसे सम्बोधित कर रहा हूँ।”
  2. त्रावणकोर में देवस्वम कमिश्नर।