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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिक्र नहीं थी कि अप्रत्यक्ष जाँचके परिणाम सही हैं या नहीं, बल्कि वे तो खेतीके खर्चमें हुई वृद्धिपर विचार करने और उसे मिनहा करनेसे बचना चाहते थे। उन आँकड़ोंका उपयोग उन्होंने (बन्दोबस्ती नियमावलीके शब्दोंमें) “लगान-वृद्धिको बहुत ऊँचा जाने से रोकनेके लिए” नहीं बल्कि लगान-दरमें वृद्धिके लिए किया।

जाँचके उपर्युक्त परिणामोंके आधारपर श्रीयुत कुँजरू, श्रीयुत वझे और श्रीयुत ठक्कर इस निष्कर्षपर पहुँचे कि “फिरसे जाँच कराने की माँग पूर्णतः उचित है,” और “हालकी इस घोषणासे कि वीरमगाम ताल्लुकेके नये बन्दोबस्तपर फिरसे विचार किया जायेगा, बारडोली ताल्लुकेके बन्दोबस्तपर पुनर्विचारकी माँग इतनी उचित हो जाती है कि इससे इनकार ही नहीं किया जा सकता।”

श्रीयुत वझेने एक और वक्तव्य जारी किया, जिसमें उन्होंने इस बातपर विशेष जोर दिया कि “बारडोलीका वर्तमान आन्दोलन विशुद्ध रूपसे आर्थिक आन्दोलन है; यह सामूहिक सविनय अवज्ञाकी योजनाका अंग नहीं है...। सारे मामलेको देखने-परखने के बाद मुझे विश्वास हो गया है कि यह आन्दोलन चलाने में इसके नेताओंका उद्देश्य केवल इतना ही है कि वे पूरी कोशिश करके उस निर्णयको रद करवायें जिसे वे सचमुच बारडोलोके किसानों के साथ किया गया निष्ठुरतापूर्ण अन्याय मानते हैं। इसपर भी यदि सरकार इस आन्दोलनको वैसा कोई बृहत्तर राजनीतिक महत्त्व देती है जैसा महत्त्व इसका है ही नहीं तो यह उसकी नासमझी भी होगी और अन्याय भी।”

यह रिपोर्ट सभी राजनीतिक विचारधाराओंके नेताओंको जँची; इस सम्बन्धमें जिन कुछ-एक भारतीय अखबारोंने ढुलमुल रवैया अपना रखा था, इस रिपोर्टके परिणामस्वरूप उनकी सहानुभूति भी निश्चित रूप से सत्याग्रहियोंकी ओर हो गई है; और उदारदल-सहित अन्य सभी हलकोंमें जनताकी माँगों और उसको जो न्यूनतम चीज मिलनी चाहिए थी उसके पक्ष में लोकमत तैयार करने में सबसे बड़ा हाथ इस रिपोर्टका ही था।

[अंग्रेजीसे]
द स्टोरी ऑफ बारडोली