पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४७९

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परिशिष्ट
परिशिष्ट १
बारडोली रिपोर्ट

विशेषणों आदिसे रहित यह रिपोर्ट अधिकसे-अधिक तर्कपूर्ण और नपी-तुली हुई है। इसमें सदस्योंने चार प्रश्नोंपर विचार किया है: “चूँकि लगान-वृद्धि जमींदारों द्वारा अपनी रैयतसे माँगी जानेवाली लगान-दरोंपर आधारित है, इसलिए यह तय करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि रैयत द्वारा अदा किये गये लगानसे सम्बन्धित तालिका क्या इतनी सावधानीसे तैयार की गई है कि उसमें सिर्फ आर्थिक दृष्टिसे उपयुक्त लगान दरें ही दर्ज की गई हों। यदि यह तालिका बहुत दोषपूर्ण पाई जाये तो इसके आधारपर निकाले गये सभी निष्कर्ष बेमतलब ही माने जाने चाहिए। फिर, यह बात भी उचित जान पड़ती है कि प्रतियोगी लगान-दरों (कम्पिटीटिव रेंट्स) को बन्दोबस्तकी नीतिके आधारके रूपमें स्वीकार करनेके पूर्व ठीक-ठीक पता लगा लेना चाहिए कि जोती-बोई जानेवाली जमीनका कितना हिस्सा नकद लगान देनेवाली रैयतके हाथमें है। तीसरा विचारणीय प्रश्न यह है कि पुराने बन्दोबस्तके अधीन लगानकी जो दरें चलती रही हैं, उनकी जाँच-पड़ताल करते समय क्या असामान्य अवधियोंको मुजरा कर दिया गया है। और अन्तमें हमें इस बातपर विचार करना है कि भू-राजस्व संहिता और बन्दोबस्ती नियमावलीके अनुसार यह बात कहाँतक उचित है। नई लगान दरें तय करनेके लिए लगभग पूर्ण रूपसे जमाबन्दी मूल्यपर निर्भर रहा जाये।” और संहिता तथा बन्दोबस्ती नियमावलीके अध्ययन और अनेक गाँवोंमें सम्बन्धित लोगोंसे की गई पूछताछ और जाँच-पड़तालके बाद वे इस निष्कर्षपर पहुँचे:

१. तालिका बहुत ही दोषपूर्ण थी, क्योंकि रेहनके सौदों, या पूरी तरह वसूल न किये गये लगानों, अथवा सशर्त बिक्रियोंको उसमें अलग नहीं रखा गया था, और ऐसे लगानोंको मिनहा नहीं किया गया था जो भू-राजस्व संहिताके खण्ड १०७ के अधीन जोतदारके खर्चपर जमीनमें किये गये सुधारोंके कारण वसूल किया गया था।

२. नकद लगानवाला क्षेत्र कुल क्षेत्रका लगभग २० प्रतिशत माना जा सकता है, और यह देखते हुए कि १८९५ में “९४ प्रतिशत जोतदार और भूस्वामी जमीन खुद जोतते हैं,” रैयत द्वारा जोती जानेवाली जमीनका अनुपात ३० प्रतिशत मानना भी आज इतना ज्यादा लगता है कि आश्चर्य होता है।

३. खुद राजस्व सदस्यके वक्तव्यके अनुसार इस तालिकामें १९१८-१९ और १९२४-२५ की खुशहालीकी अवधियोंको शामिल नहीं करना चाहिए था।

४. बन्दोबस्त आयुक्तने अपने “एक-मात्र सच्चे मार्ग-दर्शक” के रूप में लगान-सम्बन्धी अपर्याप्त और बिना जँचे आँकड़ोंपर निर्भर किया। वास्तवमें उन्हें यह जाननेकी