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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

गायकी जिस सेवा और संरक्षणको हिन्दू धर्मने पवित्र कर्तव्य माना है, उस गायका अर्थ, उस नामका पशु ही नहीं समझना चाहिए। हमारे धर्म-ग्रंथोंमें दुःख-पीड़ित धरतीकी कल्पना भी गायके रूप में ही की गई है। धरतीको ही गो नाम दिया गया है। जब-जब पृथ्वी रूपी गोमाता पापके भारसे त्रस्त होती है, तब-तब यह श्री विष्णुके आगे पुकार करनेके लिए दौड़ती है। इस गोमाताकी सेवाका अर्थ है―दुःखसे पीड़ित समस्त मानव-जातिकी सेवा; ‘जो मेहनत करते, कष्ट झेलते हैं और थक गये हैं फिर भी जिन्हें आराम नहीं मिलता’ ऐसे सव मानव-बन्धुओंकी सेवा―दरिद्रनारायणकी सेवा...।

दिलीपका यह मार्ग है―पूर्ण प्रेम, आत्म-त्याग और आत्म-शुद्धिका मार्ग। हिन्दू धर्मने गोसंरक्षणके इसी आध्यात्मिक आदर्शको ऊँचेसे-ऊँचा धर्म माना है और इसी संदर्भ में यह वर दिया गया है:

न केवलानां पयसां प्रसूतिमवेहि मां कामदुधां प्रसन्नाम्।

(यह न मान लेना कि मैं केवल दूध ही देती हूँ; मैं कामधेनु हूँ, प्रसन्न हो जाऊँ तो जो चाहे दे सकती हूँ।)

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०-९-१९२८