पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/७५

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५०. पत्र: के॰ आर॰ भिडेको

११ जुलाई, १९२८


प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपके पिता जब भी आश्रम आना चाहें, उनका स्वागत है। लेकिन जब उनको आना हो, उससे पहले आप या वे स्वयं आश्रमके मन्त्रीको सूचित कर दें।

अब आपके प्रश्नोंके बारेमें। अगर आप 'यंग इंडिया' या 'नवजीवन के नियमित पाठक हों तो सारे प्रश्नोंके उत्तर आप खुद ही पा सकते हैं। यदि नियमित पाठक न हों तो मैं आपसे इन अखबारोंकी फाइलें देखनेको कहूँगा।

यदि आप एक साधारण श्रमिककी तरह काम शुरू कर सकते हों तो मेरा खयाल है कि 'यंग इंडिया' कार्यालय में प्रशिक्षण प्राप्त करना आपके लिए सम्भव है। लेकिन यह बात मुझसे ज्यादा व्यवस्थापककी इच्छा पर निर्भर है, क्योंकि मैं प्रेसकी व्यवस्थामें दखल नहीं देता।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत के॰ आर॰ भिड़े
लिमये बिल्डिंग, चिकलवाड़ी, बम्बई-७

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४७३) की माइक्रोफिल्म से।

 

५१. पत्र : बी॰ एम॰ ट्वीडलको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
११ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और पेंसिलोंका पैकेट मिला। आपका यह अनुमान ठीक ही है कि कर्ज[१] चुकानेके लिए आपने पैसा इकट्ठा करनेका जो तरीका चुना है, उसे मैं शायद पसन्द न करूँ। किसी चीजको उसकी लागतसे दुगुनी-तिगुनी कीमत पर बेचा जाये, इसके बजाय दानके लिए सीधे अपील करना मुझे ज्यादा आसान लगेगा। दोनों ही दशाओंमें लोगोंकी दानशीलताकी वृत्तिको जगानेकी जरूरत तो पड़ेगी ही। फिर

 

  1. शालाको नई इमारत बनवानेसे सम्बन्धित कर्ज।