पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/११

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भूमिका

प्रस्तुत खण्डमें अक्टूबर १९०३ से जून १९०५ तककी सामग्री दी गई है। इस समय गांधीजी जोहानिसबर्गमें थे और उनका समय तथा ध्यान धन्धेसे सम्बन्धित कार्यों और सार्वजनिक सेवामें बँटा रहता था। उनकी वकालत बहुत अच्छी चल रही थी और आमदनी भी खासी थी। एक पत्र-पुस्तिकामें उनके एक हजार पत्र उपलब्ध हैं। इनमें से ज्यादातर मुवक्किलोंके नाम हैं और सारेके-सारे लगभग तीन महीनेके अरसेमें लिखे गये हैं। उन दिनों वे अपने घरसे दफ्तरतक ६ मील रोज साइकिलपर जाया करते थे और पीछे तो पैदल ही जाने लगे थे। इससे मालूम होता है कि उन दिनों भी उनका जीवन कितना सादा था।

जून १९०३ में डर्बनसे साप्ताहिक इंडियन ओपिनियनका प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। वह गांधीजीकी उदारतापूर्ण आर्थिक सहायतासे चालू रखा गया और अक्टूबर १९०४ में तो उन्होंने उसे पूरी तरह अपने हाथोंमें ले लिया। पत्रमें उनके समय और शक्तिका बड़ा भाग ही नहीं, वरन् उनकी सम्पत्ति भी लगातार खपती रही। उन्होंने गोखलेको लिखा था (जनवरी १३, १९०५) कि उनका दफ्तर अखबारके हितकी दृष्टिसे चलाया जा रहा है और वे अबतक ३,५०० पौंडकी जिम्मेदारी उठा चुके हैं।

सन् १९०५ की दो प्रमुख घटनाएँ थीं—जोहानिसबर्गमें प्लेग और फीनिक्स बस्तीकी स्थापना। गांधीजीने उस समय इन दोनों घटनाओंका जो उल्लेख किया है, वह उनके द्वारा आत्मकथामें अधिक तटस्थ वृत्तिसे दिये गये विवरणकी पृष्ठभूमि है। इन दोनों उल्लेखोंमें कुछ मनोरंजक असमानता भी दिखाई देती है। जब मार्च में जोहानिसबर्गकी भारतीय बस्तीमें प्लेग फैला तब गांधीजीने बीमारीका विस्तार रोकने और बीमारोंकी सार-सँभालके लिए तत्काल जोरदार कार्रवाई प्रारम्भ कर दी। उनकी यह कार्रवाई इतनी दूरदर्शितापूर्ण और प्रभावकारी थी कि उसकी तुलना उनके प्रथम जीवनी लेखक रेवरेंड जे० जे० डोकने "उस गरीब आदमी" से की है "जिसने अपनी बुद्धिमत्तासे नगरकी रक्षा की थी" (एक्लीज़ियास्टिक्स ९, १५)। इसके कई साल बाद जब गांधीजीने इस घटनाकी बात लिखी, तब उन्होंने अपने साहसके बारेमें स्वयं थोड़ा संतोष व्यक्त किया; क्योंकि उससे लोगोंकी सेवा हुई थी और लोगोंपर उसका अच्छा प्रभाव पड़ा था। देखिए आत्मकथा (भाग ४, अध्याय १५, १६, १७)। किन्तु उस समय इंडियन ओपिनियनमें गांधीजीने जो लेखमाला प्रकाशित की और समाचारपत्रोंमें उनकी जो मुलाकातें और चिट्ठियाँ छपीं उनसे इस बातका एक दूसरा ही पहलू प्रकट होता है। उनमें गांधीजीने भारतीयोंके जबरदस्त कामपर जोर दिया है और पूरी तरहसे इस बातको सिद्ध करनेकी कोशिश की है कि प्लेग फैलनेका मुख्य कारण नगर-परिषदकी लापरवाही थी। गांधीजी इस दुःखजनक विषयपर दीर्घ कालतक निरन्तर लिखते रहे। अपने इस कामके विषयमें उन्होंने एक जगह कहा है कि वे इसे करते हुए "सत्य, लोक-कल्याण और स्वदेशवासी" इन त्रिदेवोंकी आराधना कर रहे हैं।

उन्होंने समाचारपत्रोंको प्लेगके सम्बन्धमें जो पत्र लिखे और इसी कालमें निरामिष भोजनके विषयमें जो दिलचस्पी ली उनसे हेनरी एस० एल० पोलकका ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ। श्री पोलक क्रिटिक नामक पत्रके उपसम्पादक थे। दोनोंका स्वभाव समान होनेके कारण वे जल्दी ही एक-दूसरेके मित्र बन गये। दूसरे सज्जन अल्बर्ट वेस्ट इसके पहले