सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

छ:

ही छपाईका अपना धन्धा छोड़कर इंडियन ओपिनियनमें आ चुके थे। उन्होंने देखा कि पत्रकी आर्थिक स्थिति गांधीजी जितनी समझते थे उससे भी अधिक कमजोर है, किन्तु फिर भी उन्होंने गांधीजीको विश्वास दिलाया कि लाभ हो या न हो, वे वहाँ बने रहेंगे। तब गांधीजी इस स्थितिकी जाँच करनेके विचारसे और यदि संभव हो तो उसमें सुधार करनेके उद्देश्यसे तत्काल जोहानिसबर्गसे डर्बनको रवाना हो गये। उन दिनों गांधीजी जोहानिसबर्गमें रहकर वकालत करते थे और इंडियन ओपिनियन डर्बनमें छपता और प्रकाशित होता था। पोलक उनको छोड़नेके लिए स्टेशनपर आये और उन्होंने गांधीजीको यात्रामें पढ़नेके लिए रस्किनकी पुस्तक अनटू दिस लास्ट दी। रेल-यात्रा पूरे २४ घंटोंकी थी। गांधीजीने यात्रामें इस पुस्तकको पढ़ा और उनके मनपर इसका जादूका-सा प्रभाव पड़ा; उससे उनके जीवनमें "तत्काल और व्यावहारिक क्रान्ति" हो गई। बादमें उन्होंने इस पुस्तकका गुजरातीमें सर्वोदय नामसे अनुवाद किया। यह पुस्तक लोककल्याणकी दृष्टिसे जीवनको रचनेवालोंकी मार्गदर्शिका है।

गांधीजी सत्यकी खोज कर्मके पथपर चलकर करते थे और व्यावहारिक क्षेत्रमें सफल होनेपर ही वे किसी विचारको मूल्यवान मानते थे। रस्किनके उपदेशोंमें गांधीजीके गम्भीर विश्वासोंकी छाया तो थी ही, साथ ही उनमें शरीर-श्रम अथवा अपने हाथोंसे काम करनेका जो गौरव बताया गया था, उनमें गांधीजीको इंडियन ओपिनियनको स्वावलम्बी बनानेकी तात्कालिक समस्याका हल भी दिखाई दिया। गांधीजी इसके एक या दो सप्ताह पहले अपने चचेरे भाइयों और भतीजोंके पास टोंगाट गये थे। वहाँ उनकी दूकानके पीछे एक सुन्दर बाग था (प्रभुदास गांधीकी गुजराती पुस्तक जीवननुं परोढ पृष्ठ ६३)। उस समय उन्होंने सोचा कि बगीचा सुन्दरताके साथ-साथ, दूकानकी तरह आमदनीका विश्वस्त साधन भी हो सकता है। इस तरह इस पुस्तकके पठन और उसकी पृष्ठभूमिमें मननका परिणाम यह हुआ कि गांधीजीने १,००० पौंडमें डर्बनसे १४ मील दूर १०० एकड़की एक जमीन खरीदी और उसमें फीनिक्स बस्तीकी स्थापना की। शक्ति-चालित मशीनोंपर निर्भर न रहना पड़े, इसलिए साप्ताहिकका आकार घटाकर 'फुलस्केप' कर दिया गया। २४ दिसम्बर १९०४ के अंकमें प्रकाशित "अपनी बात" शीर्षक लेख ३१ दिसम्बर के अंकमें फिरसे छापा गया। इसमें इस साहसिक कार्यके सिलसिलेमें गांधीजीके प्रयत्नोंका कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु नेटाल भारतीय कांग्रेस, ब्रिटिश भारतीय संघ और उन निष्ठावान कार्यकर्ताओंके सहयोगकी मुक्त-कण्ठसे सराहना की गई है, जिन्होंने इस "नवल और क्रान्तिकारी योजनाको स्वीकार कर लिया था।" गांधीजीने इस घोषणामें इंडियन ओपिनियनके उद्देश्य इस प्रकार दोहराये हैं: "सम्राट एडवर्डकी यूरोपीय और भारतीय प्रजाओंमें निकटतर सम्बन्ध स्थापित करना; लोकमतको शिक्षित करना; गलतफहमीके कारणोंको दूर करना; भारतीयोंके सामने उनके अपने दोष रखना और उन्हें, जब कि वे अपने अधिकारोंकी प्राप्तिका आग्रह कर रहे हैं, उनका कर्त्तव्य-पथ दिखाना।"

उन दिनों दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीय अनेक बड़ी-बड़ी निर्योग्यताओंसे त्रस्त थे। एक उपनिवेशमें जो निर्योग्यताएँ थीं, दूसरेमें उनका रूप कुछ बदल जाता था और कुछका रूप कालान्तरसे भी बदलता रहता था। इन निर्योग्यताओंमें प्रवास और व्यापार करने, रेलगाड़ियों और घोड़ागाड़ियोंमें सफर करने, पैदल-पटरियोंपर चलने, बस्तीके बाहर रहने और व्यापार करने तथा अचल सम्पत्ति खरीदने आदिपर प्रतिबन्ध शामिल थे। गोरोंकी व्यापारिक ईर्ष्या और कौमी दम्भ, एशियाई विभागकी कारगजारियों, विक्रेता-परवाना अधिनियमके अन्तर्गत परवाना अधिकारियों तथा नगर-परिषदोंके सनक-भरे फैसलों और पहरेदार संघों तथा श्वेतसंघोंकी उत्तेजक कार्रवाइयोंके रूपमें प्रगट होते रहते थे। बोअरोंके समयके बुरे कानूनोंका,