१७४. सर मंचरजीकी सेवाएँ[१]
लोकसभायें सर मंचरजी द्वारा पूछे गये प्रश्न और श्री ब्रॉड्रिक अथवा श्री लिटिलटन द्वारा दिये गये उनके उत्तर हम अन्य स्तम्भमें पूरे-पूरे दे रहे हैं। उनसे जाहिर होता है कि ये माननीय सदस्य क्या दक्षिण आफ्रिका, क्या अन्य सुदूर राज्यों और क्या स्वयं भारतमें रहनेवाले अपने देशवासियों--सबकी कैसी अमूल्य सेवा कर रहे हैं। उक्त प्रश्नोत्तर यह भी बताते हैं कि ये सुयोग्य महानुभाव कैसी लगनसे दक्षिण आफ्रिकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति के बारेमें पूछताछ करते रहते हैं। जब कभी कोई बात उठानेका अवसर आता है, वे उसे नहीं चूकते। वे अपना कर्त्तव्य जिस तरह करते हैं उसका सम्बन्धित मन्त्रियोंपर ऐसा प्रभाव पड़ा है कि उन्होंने प्रस्तुत परिस्थितियों में जितनी विस्तृत जानकारी दी जा सकती है, उतनी विस्तृत जानकारी उन्हें देते रहनेका नियम-सा बना लिया है। उनके प्रश्नोंके उत्तर भी वे प्रायः सहानुभूतिपूर्ण रुखसे देते हैं। दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक भारतवासीकी हार्दिक प्रार्थना है कि वे दीर्घायु हों और अपनी उपस्थिति से लोकसभाका मान बढ़ाते हुए अपने देशवासियोंकी सेवा करते रहें|
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०४
१७५. बस्तियोंके बाहर भारतीय व्यापार[२]
उपनिवेश-मंत्रीसे पूछना है कि क्या वे जानते हैं, सर आर्थर लालीने गत १८ मईको हाइडेलबर्ग में ब्रिटिश भारतीयोंके एक शिष्टमण्डलके अभिनन्दनका[३] उत्तर देते हुए यह कहा था कि सर्वोच्च न्यायालयने हबीच मोटन बनाम ट्रान्सवाल-सरकार परीक्षात्मक मुकदमेमें जो यह घोषित किया है कि परवानेदार व्यापारियोंको बस्तियोंके बाहर व्यापार करनेकी स्वतन्त्रता बाकायदा है, उसे बरदाश्त नहीं किया जायेगा; और यह भी कि, इस निर्णयको रद करनेका कानून पास करनेके लिए उपनिवेश मंत्री से अनुमति देनेका अनुरोध भी किया जा चुका है। यदि ऐसा हो और यदि उनसे ऐसा निवेदन किया गया हो, तो क्या वर्तमान अधिकारोंमें हस्तक्षेप न करनेके लॉर्ड मिलनर द्वारा बार-बार दिये गये वचनोंको ध्यान में रखते हुए उपनिवेश मन्त्री महोदय ऐसा कोई भी कानून बरदाश्त करने से इनकार करेंगे?
इंडिया, २४-६-१९०४