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१७३. नेटालके सहयोगियोंसे अपील

इस मासकी ४ तारीखके अंकमें हमने नेटालके गिरमिटिया भारतीयोंकी आत्महत्याओंका जो प्रश्न उठाया था[१] उसे फिर उठाने के लिए हम क्षमा-याचना नहीं करते। हमें दुःख होता है कि नेटाल-मर्क्युरीको छोड़कर अन्य दैनिक पत्रोंने इस प्रश्नको नहीं उठाया। यह तो सीधा-सादा मानवताका प्रश्न है और इसमें, सार्वजनिक समाचार-पत्रोंकी हैसियतसे, उनकी दिलचस्पी न हो, यह हो नहीं सकता। आयोगकी माँग करनेमें हमारा उद्देश्य सत्यको प्रकट कराना मात्र है, और हम महसूस करते हैं कि यदि स्वयं मालिक लोग भी इस बातको तटस्थतासे सोचें तो जाँच-आयोगकी नियुक्तिका स्वागत ही करेंगे। यदि एक निष्पक्ष आयोग इस निर्णयपर पहुँचे कि प्रतिवर्ष भयानक संख्यामें होनेवाली गिरमिटिया भारतीयोंकी आत्महत्याओंका मालिकोंसे कोई सम्बन्ध नहीं है तो इससे उन्हें और सर्वसाधारण जनताको भी बड़ी राहत मिलेगी। दूसरी ओर, अगर वे कुछ ऐसा कर सकें, जिससे ये अस्वाभाविक मौतें रुक जायें तो यह उनके लिए, और जो अभागे लोग शर्तबन्द होकर काम कर रहे हैं उनके लिए भी, एक उचित दिशामें बढ़ा हुआ कदम होगा। यह कोई ऐसी बात नहीं है, जिसे एक ब्रिटिश उपनिवेशमें लाचार रुख जाहिर करनेवाली कतिपय पंक्तियाँ लिखकर आई-गई कर दिया जाये। हमें कोई सन्देह नहीं कि इस खराबीका कोई-न-कोई इलाज होगा ही, शर्त इतनी ही है कि उसे चिन्तापूर्वक सही ढंगसे खोजा जाये। इसलिए हम आशा करते हैं कि हमारे सहयोगी हमारे सत्य शोधके नम्र प्रयत्नोंको दृढ़ करेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०४
  1. देखिए "गिरमिटिया भारतीय,” ४-६-१९०४।