पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३१

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१. नेटालका प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम

अभीतक हम जिसे प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकके[१] रूपमें जानते थे, उसपर सम्राट्की मंजूरी मिल गई और वह सरकारी गज़टमें कानूनके रूपमें प्रकाशित कर दिया गया है। अब वह पूरी शक्ति और प्रभावसहित उपनिवेशमें लागू हो गया है। ब्रिटिश सरकारसे उसके मंजूर होनेमें कभी किसीको शंका नहीं रही। अब उपनिवेश बहुत शक्ति-सम्पन्न बन गये हैं और दिन-प्रतिदिन और भी अधिक शक्तिशाली बनते जा रहे हैं। इसलिए सम्राट्के भारतीय प्रजाजनोंके लिए तो उन सब नियन्त्रणोंके सामने धैर्य और शान्तिसे सर झुकाना ही रहा, जो उपनिवेशी उनपर लादना पसन्द करें। बस, हम भी लॉर्ड मिलनरके[२] साथ-साथ यह आशा लगाये रहें कि "समय बीतने पर, और बातचीतकी मददसे," उपनिवेशी खुद ही अपने तरीकोंकी भूल समझ लेंगे और इस महान शक्तिशाली साम्राज्यके एक अंगके निवासियोंके नाते हमारे प्रति अपने कर्तव्योंको पहचानकर महसूस करने लगेंगे कि उन्हें उनका पालन करना चाहिए। पुराने और नये कानूनके बीच खास फर्क कहाँ-कहाँ है, यह इस मौकेपर दिखाना अच्छा होगा।

पुराना

(१) भाषा-विषयक शर्त यह थी कि कानूनके साथ अर्जीका जो एक साधारण नमूना दिया गया था उसके अनुसार एक अर्जी यूरोपकी किसी भी भाषाकी लिपिमें लिख सकनेकी योग्यता अर्जदारमें हो।

नया

(१) प्रवासी-अधिकारी किसी भी अर्जीका मजमून बोलता जायेगा। वही अर्जदारको लिखना होगा।

पुराना

(२) अधिकारी प्रवासियोंके नाबालिग बच्चे, जो २१ वर्षसे अधिक उम्रके नहीं होंगे, उपनिवेशमें उनके साथ आ सकेंगे। बच्चोंके लिए भाषाकी कोई कसौटी नहीं होगी।

नया

(२) अब बालिग होनेकी उम्र मनमाने तौरपर १६ वर्ष निश्चित कर दी गई है।

पुराना

(३) हर-कोई आदमी, जो यह सिद्ध कर सके कि वह दो वर्षसे उपनिवेशमें रह रहा है, उपनिवेशका निवासी होनेका प्रमाणपत्र पानेका अधिकारी होगा और इसलिए उसका प्रवेश निषिद्ध नहीं होगा।

नया

(३) यह अवधि अब बढ़ाकर तीन वर्ष कर दी गई है।

४—१

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३८७-८८ तथा पृष्ठ ४२४-२५।
  2. सर अल्फ्रेड मिलनर, केप कालोनी के हाई कमिश्नर और गवर्नर (१८९७-१९०१), ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशके (१९०१-१९०५)।