पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२४७. एडविन आर्नोल्ड-स्मारक

एडविन आर्नोल्ड-स्मारक समितिके जारी किये हुए परिपत्रकी एक प्रति हमें मिली है। समितिका —

खयाल है कि सर एडविनके कामका सबसे उचित सम्मान वह होगा जिससे उनका नाम प्राच्य साहित्यके प्रति उनकी महान सेवाओंके साथ जुड़ जाये। यह उनका विशेषाधिकार था कि अपनी काव्य-प्रतिभा और पूर्वी सभ्यता, रीति-रिवाजों और घटनाओंपर अपने सजीव और प्रदीप्त गद्य-लेखोंके द्वारा उन्होंने यूरोप और अमेरीकाके पाश्चात्य लोगोंको पूर्वके लोगोंका अधिक ज्ञान कराया और इस प्रकार उनमें आपसी दिलचस्पी और हमदर्दी पैदा की, जिससे दोनोंके कल्याण और सुखकी वृद्धि हुए बिना नहीं रह सकती। इसलिए समिति ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयमें प्राच्य साहित्य में प्रवीणता प्राप्त करनेके लिए छात्रवृत्ति या छात्रवृत्तियां देना अथवा पुरस्कारोंकी स्थापना करना चाहती है।

समिति में परम माननीय लॉर्ड ब्रेसी, अध्यक्ष के रूपमें हैं और सर आगा खाँ, सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरी, सर जॉर्ज बर्डवुड, परममाननीय जोज़ेफ़ चेम्बरलेन, वायकाउंट ह्याशी, श्री रूडयार्ड किपलिंग और दूसरे लोगोंके नाम भी हैं। चन्दा श्री हेनरी एस० किंग ऐंड कं०, ६५ कॉर्नहिल, लन्दनके पतेपर भेजा जा सकता है। अगर हमारे कोई पाठक हमारे पास अपना चन्दा भेजेंगे तो हम इंडियन ओपिनियनमें खुशीसे उसकी प्राप्ति स्वीकार करेंगे और उसको समय-समयपर खजानचीको भेज देंगे। सर एडविनकी पूर्व और पश्चिमके प्रति सेवाओंकी अभी-तक काफी कद्र नहीं की गई है। समय ही बतायेगा कि उनकी ये सेवायें कितनी बड़ी थीं। पश्चिमी मानसपर अकेले एशियाकी ज्योति (लाइट ऑफ एशिया) ग्रन्थकी छाप ही सदाके लिए अमिट हो गई है। कहा जाता है कि अपने मानसके पूर्वी रुझानके कारण ही उन्हें राजकविका पद नहीं मिल पाया। इसलिए हमें आशा है कि हमारे पाठक, भारतीय और यूरोपीय दोनों, इस स्मारक कोषमें बहुतायतसे चन्दा भेजेंगे।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९०४
  1. इसमें खुद गांधीजीने ३ पौंड ३ शिलिंग चन्दा दिया था।