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२७७. हमारी कसौटी

हम पिछले अंक में अपनी स्थितिके विषयमें लिख चुके हैं। हमने उसमें यह भी लिखा था कि यहाँ जो लोग काम करते हैं उनमें तीन अंग्रेज हैं। अपने पाठकोंको, हमने जो नया कदम उठाया है, उसका अधिक अन्दाज हो जाये, इस हेतुसे इन तीन अंग्रेजोंने कौन-सा जोखिम उठाया है, वे कौन हैं और किसलिए प्रेसमें आये हैं, यह हम बताना चाहते हैं।

इनमें से एकका नाम श्री वेस्ट[१] है। वे छापाखाने के कामके खासे जानकार हैं। जोहानिसबर्ग में उनका छापाखाना था। वहाँ उनकी आमदनी ठीक थी और उनके अधीन कितने ही लोग थे। ओपिनियनपर जब वास्तविक संकट पड़ा उस समय वे २४ घंटेमें तैयारी करके अपना काम बन्द करके चले आये[२]। ये सज्जन इस समय खाने-पहनने लायक लेकर, अन्तमें लाभ होगा[३], ऐसा विश्वास रखकर रहते हैं और अपना ही काम मानकर सुबह से शामतक मेहनत किया करते हैं। दूसरे श्री किचन[४] हैं। वे बिजलीके ठेकेदार थे। उनकी अपनी पेढ़ी थी और वे अच्छी कमाई करते थे। नये परिवर्तनकी खवरसे उनका मन उत्साहित हुआ। उन्होंने देखा कि ओपिनियनका ध्येय बहुत अच्छा है। पैसेका उन्हें लोभ नहीं है, और जिस पद्धतिसे फीनिक्समें रहना है वह सरल, सस्ती और सरस है; इसलिए वे अपना धंधा छोड़कर केवल निर्वाहके योग्य मिलनेवाले पैसेमें सन्तोष मानकर प्रेसमें शामिल हो गये।

तीसरे श्री पोलक[५] हैं। वे अभी क्रिटिक[६] समाचारपत्र के सहसम्पादक हैं। उन्हें अच्छा वेतन मिलता है किन्तु अत्यन्त सादे विचारके होनेके कारण तथा यह मानकर, कि इंडियन ओपिनियन में वे इच्छानुसार अत्याचार के विरुद्ध अपनी भावना प्रकट कर सकेंगे, उन्होंने ऊपरकी नौकरी छोड़ने की सूचना अपने प्रधानको देदी है और अगले वर्ष के प्रारम्भ में यहाँ आ पहुँचेंगे। इस बीच अखबारके

  1. अल्बर्ट वेस्टसे गांधीजीकी पहली मुलाकात जोहानिसबर्ग के एक उपाहार गृहमें हुई। वेस्टका जन्म लिकनशायर के एक कृषक-कुटुम्बमें हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा साधारण हुई थी। बादमें श्री वेस्ट फीनिक्स आश्रम में गांधीजी के साथ काम करने चले आये और उनकी माता, बहन कुमारी एडा और पत्नी भी आश्रम में रहने लगीं। श्री वेस्ट सत्याग्रह आन्दोलनमें गिरफ्तार भी हुए। देखिये आत्मकथा (गुजराती), भाग ४, अध्याय १६ ।
  2. छापाखाना पहले ढर्बनमें स्थापित हुआ था। फिर १९०४ में उसे फीनिक्समें हटाया गया।
  3. पहले आधा लाभ और १० पौंड प्रतिमास वेतन निर्धारित हुआ था। किन्तु जब प्रेस आत्मनिर्भर नहीं हुआ और फीनिक्स ले जाया गया, तब वर्ण या जातिके भेद-भाव के बिना सबका वेतन ३ पौंड मासिक तय किया गया।
  4. श्री हर्बर्ट किचन एक थियॉसफिस्ट थे। उन्होंने श्री नाजर की अकाल मृत्युके बाद इंडियन ओपिनियनका सम्पादन किया। कुछ दिनों गांधीजीके साथ रहे और बोअर युद्धमें उनके साथ काम किया।
  5. श्री हेनरी एस० एल० पोल्कसे भी गांधीजीकी भेंट वेजीटेरियन रेस्तरोंमें हुई थी। पोल्कने ही गांधीजीको रस्किनकी पुस्तक अन टु दिस लास्टकी प्रति दी थी जिससे प्रभावित होकर गांधीजीने फीनिक्स आश्रमकी स्थापना की। गांधीजीकी सलाहपर पोलकने वकालतकी शिक्षा ली और उनके सहयोगी की तरह काम करने लगे। किचनके बाद इंडियन ओपिनियन के सम्पादक हुए। दक्षिण आफ्रिकी संघर्ष में मदद करने के लिए भारत और इंग्लैंड गये तथा सत्याग्रह आन्दोलनमें कारावास भोगा।
  6. ट्रान्सवाल क्रिटिक।