सौभाग्यसे भारत सरकारने दृढ़ता दिखलाई है और आशा की जा सकती है कि शीघ्र ही कठिनाइयोंका कोई उचित हल निकल आयेगा।
ऑरेंज रिवर उपनिवेश अपनी औपनिवेशिक नीतिमें सर्वथा अडिग रहा है। वह ब्रिटिश आदर्शीका विरोधी है, इसकी उसके निवासियोंको कोई चिन्ता नहीं। युद्ध तो दूसरोंके साथ-साथ भारतीयोंके लिए भी लड़ा गया था। ब्लूमफाँटीनपर यूनियन जैक फहराता हुआ भी ब्रिटिश भारतीयोंको कोई संरक्षण प्रदान नहीं करता। ब्रिटिश भारतीय अछूतोंके समान दूर रखे जाते हैं।
केप उपनिवेशके भिन्न-भिन्न भागोंके लिए भिन्न-भिन्न कानूनोंका विचित्र नजारा दिखलाई पड़ता है। फलतः केप टाउनमें रहनेवाले भारतीय तो नागरिक जीवनको साधारण स्वतन्त्रताका उपभोग करते हैं; परन्तु ईस्ट लन्दनमें उन्हें पैदल पटरियोंपर चलने और ट्रान्सकाईके अधीनस्थ राज्य में प्रवेशकी भी अनुमति नहीं है। हमारा पक्का विश्वास है कि यह प्रतिक्रियावादी नीति ट्रान्सवालमें लॉर्ड मिलनरकी बाजार-सूचनाकी सीधी उपज है। उसके द्वारा उन्होंने दुनियाको बता दिया कि ब्रिटिश भारतीयोंके अधिकारोंको सामान्य संरक्षण भी प्राप्त होनेवाला नहीं है। फिर अगर शुभाशा अन्तरीपके स्वशासित उपनिवेशने शीघ्रतापूर्वक और भरसक इस उदाहरणका अनुकरण किया, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है। वर्षके अन्त में ब्रिटिश भारतीयोंके लिए स्थिति ऐसी विषम है। परन्तु मुसीबतके फल मीठे होते हैं। मुसीबत उसका ज्यादा नुकसान करती है, जो उसे ढाता है, बनिस्बत उसके कि जिसपर वह ढाई जाती है। एक विद्वान धर्मात्मा पुरुषने कहा है:
इस भौतिक जीवनकी मुसीबत सहना मनुष्यके लिए अच्छा है, क्योंकि वह उसे हृदयके पवित्र एकान्तकी ओर वापस ले जाती है और केवल वहीं वह देखता है कि वह तो अपने ही मूल गृहसे निर्वासित है।
इसलिए अगर हम अपनी मुसीबतका सही-सही उपयोग करें तो उससे हमें पता चलता है कि हमें वह पवित्र करेगी और सही रास्ता दिखायेगी। निराशाके लिए कोई कारण नहीं है। हमारा काम केवल यह है कि जिसे हम सही और न्यायपूर्ण समझते हैं उसे बराबर करते रहें और परिणाम भगवानपर छोड़ दें, जिसकी अनुमति या जानकारीके बिना पत्ता भी नहीं हिलता।
अगर हमें यह कहनेके लिए माफ किया जाये तो, हमारा विश्वास है कि इंडियन ओपि- नियन समाजका एक ऐसा मित्र और वकील है, जो कभी पैर पीछे न हटायेगा। हमने शक्ति-भर अपने देशवासियोंकी सेवा करनेका प्रयत्न किया है। और चूंकि हम विश्वास करते हैं कि आखिरकार सत्य और न्यायकी विजय होगी और चूंकि ब्रिटिश जनताकी सद्बुद्धिपर हमें आस्था है, इसलिए, यद्यपि आज घटाएँ काली दिखाई देती हैं, हम सफलताकी प्रत्येक आशाके साथ, अपने देशभाइयों और अपने अन्य सब पाठकोंके लिए कामना करते हैं—
नव वर्ष मंगलमय हो!
इंडियन ओपिनियन, ३१-१२-१९०४