लिए लिखना शुरू कर दिया है। पॉचेफस्ट्रूममें हम लोगोंके विरुद्ध एक बड़ी सभा की गई थी। उसका समूचा विवरण इन्होंने भेजा था; वह बहुतोंने अंग्रेजीमें देखा होगा। भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री क्रूगरकी अन्त्येष्टि-क्रियाका अंग्रेजीमें विवरण भी श्री पोलकने ही लिखा था।
मेरे अनुभव प्रमाणसे तीनों अंग्रेज सज्जन भले, बुद्धिमान और निःस्वार्थं व्यक्ति हैं। जब दूसरी कौमके लोग इतना अधिक करते हैं तो मनमें यह सवाल आना ही चाहिए कि हमें क्या करना चाहिए। हर व्यक्ति, जिसका इस साहसिक काममें मदद करनेका विचार हो, अपनी शक्तिके अनुसार मदद कर सकता है और उसमें उसका कुछ नहीं जाता। एक हाथ से ताली नहीं बजती। यह समाचारपत्र सब भारतीयोंका है, ऐसा समझना चाहिए और हम जब ऐसा समझकर काम करेंगे, तभी पार लगेंगे।
इंडियन ओपिनियन, ३१-१२-१९०४
२७८. पाँचेफस्ट्रूमको कुछ और गलतबयानियाँ
पाँचेफस्ट्रमकी सभामें, जिसका विवरण[१] हाल ही में हमारे स्तम्भों में छप चुका है, दिये गये कुछ वक्तव्योंपर हम चर्चा किये बिना नहीं रह सकते। क्योंकि, हम अपने यूरोपीय मित्रोंके सामने सच्ची बातें पेश करना जरूरी मानते हैं, ताकि वे भारतीयोंकी स्थितिको सही रूपमें समझ सकें।
हम ट्रान्सवालमें भारतीयोंके प्रवेशके बारेमें श्री लवडेके शब्द ही उद्धृत करेंगे:
रोक-थाम कानूनका प्रस्ताव तो सर्वप्रथम भारतीय व्यापारियोंके आने और १८८१ के समझौतेके बदले में १८८४ का समझौता स्वीकार होनेके बाद ही पेश किया गया था।
अतः, श्री लवडे यह बताना चाहते हैं कि १८८४ से पहले ट्रान्सवालमें कोई भारतीय व्यापार कर ही नहीं रहे थे और, इसलिए, जब समझौता तैयार किया गया तब भारतीयोंका कोई खयाल किया ही नहीं गया था।
तथापि सत्य यह है कि समझौते के अमलके बारेमें भारतीयोंका खयाल किया गया था और १८८१ तथा १८८२ में और, फलतः, १८८४ के पहले, भारतीय व्यापारी ट्रान्सवालमें व्यापार कर रहे थे। इस तरह, श्री लवडेके “तथ्य" कमसे कम इस विषयमें तो सदोष हैं। इसके अलावा, जैसा कि श्री गनीने स्टारको लिखे एक पत्रमें[२] बताया है, १८८५ का कानून ३ गोरी आबादीके किया गया था। कुछ वक्तव्य यहाँ एक बहुत बड़े भागकी गम्भीर गलतबयानीके कारण पास उद्धृत किये जा रहे हैं : सारे समाजपर इन लोगोंकी गन्दी आदतों और अनैतिक आचारसे उत्पन्न कोढ़, उपदंश तथा इसी प्रकारके अन्य घृणित रोगोंके फैलनेका जो खतरा आ खड़ा हुआ है।