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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

और भी चूँकि ये लोग पत्नियों या स्त्री-रिश्तेदारों के बिना राज्यमें आते हैं, नतीजा साफ हैं। इनका धर्म सब स्त्रियों को आत्मारहित और ईसाइयोंको स्वाभाविक शिकार मानना सिखाता है। ये वक्तव्य, हम जिसे उचित और न्यायसंगत बयान मानते हैं, उससे मेल नहीं खाते। जिस तरह के आरोप हमने उद्धृत किये हैं, उनका प्रतिवाद करनेका कष्ट उठाना अनावश्यक है। तो फिर, जैसा कि हम कह चुके हैं, श्री लवडे कथनीयको न कहने और अकथनीयको कहने के अपराधी हुए हैं। और व्यक्तिगत दुर्गुणोंका असम्बद्ध विषय छेड़कर असली मुद्देसे लोगोंका ध्यान बँटाने का प्रयत्न करना उनके लिए शोभास्पद न था।

अब रही अरब व्यापारियों द्वारा सालमें ४० पौंडसे ज्यादा खर्च न करनेकी बात। यह कहना गलत है कि भारतीय व्यापारी सालमें ४० पौंडसे ज्यादा खर्च नहीं करता। अगर श्री लवडेके कथनानुसार, उसके पास पाँच सहायक हों, जैसे कि बहुधा होते ही हैं, और प्रत्येकको २४ पौंड सालाना दिया जाता हो, तो यह आरम्भिक खर्च ही १२० पौंड हो गया। उसका अपना व्यापारका खर्च, व्यक्तिगत खर्च, भाड़ा, और कर इसके अलावा है। किसी भी हालतमें, अनुभवके आधारपर हम यह अपेक्षा नहीं करते कि श्री लवडे श्री गनीकी चुनौती स्वीकार करेंगे। ट्रान्सवालमें वर्तमान भारतीयोंकी संख्या के बारेमें और इस कथनके विषयमें, कि उपनिवेशमें उनका आना लगातार जारी है, हम एक अन्य लेखमें[१] अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं। हमें सिर्फ इतना ही कहने की जरूरत है कि मुख्य परवाना-सचिवके प्रमाण हमारे पास मौजूद हैं, और उनके अनुसार श्री लवडेके “तथ्य गलत हैं। प्रिटोरियामें वस्तु-भण्डारोंकी संख्याका जिक्र करते हुए श्री लवडेने यह कहकर अत्यन्त असावधानी दिखाई है कि उनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। सच बात यह है कि प्रिटोरियामें युद्ध के समयसे भारतीय वस्तु भण्डारोंकी संख्या लगभग ३० फीसदी घटी है; जब कि गोरोंके भण्डारोंकी संख्या इतनी ही बढ़ी है। बस्तीकी बात बिलकुल जुदा और झूठा असर पैदा करने के उद्देश्यसे उसका यहाँ जबरदस्ती घसीट लाना उचित नहीं था। तो फिर, अगर श्री लवडे अपने ही शहरके बारेमें गलत जानकारी रखते हैं तो उनसे ट्रान्सवालके अन्य शहरों, दक्षिण आफ्रिकाके अन्य उपनिवेशों और स्वयं भारतके बारेमें सच्ची स्थितिकी जानकारी रखनेकी अपेक्षा कैसे की जा सकती है? भारतीयोंपर असत्यका जो आरोप लगाया गया है उसपर एक दूसरे लेखमें विचार करनेका हमारा इरादा है। हम यह बताने का भी प्रयत्न करेंगे कि जो व्यक्ति इस प्रकारके विषयमें अपना मत देनेके पूर्णतः योग्य हैं, वे बहुत भिन्न विचार रखते हैं; और हम सब उचित सम्मानके साथ निवेदन करते हैं कि श्री लवडे उसके योग्य नहीं हैं।

श्री लवडेने कहा था कि भारतमें सरकारी वकीलको कैदियोंपर फिरसे मुकदमे चलाने, सजाओंको रद करने और मामलोंको ऊँची अदालतोंमें ले जानेके कतिपय अधिकार प्राप्त हैं, क्योंकि भारतमें झूठी गवाही देना उचित बात मानी जाती है। झूठी गवाहीका प्रश्न तो दूर रहा, श्री लवडेको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारतमें सरकारी वकीलको ट्रान्सवालके महान्यायवादीकी अपेक्षा ज्यादा अधिकार प्राप्त नहीं हैं और वास्तवमें उसके अधिकार इतने व्यापक हैं ही नहीं।

परन्तु अबतक श्री लवडेने अपनी जानकारीपर विचार नहीं किया है, क्योंकि उन्होंने इस मुख्य तथ्यका जिक्र ही नहीं किया कि इन सरकारी वकीलोंमें से बहुतसे भारतीय रहे हैं, और हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण और अर्थगभित बात है जो छोड़ दी गई है।

  1. देखिए “पत्र: स्टारको" दिसम्बर २४, १९०४ के पूर्व।