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३४४. पत्र : "आउटलुक" को[१]

[अप्रैल २२, १९०५ के पूर्व]

सेवामें
सम्पादक,
आउटलुक
जोहानिसबर्ग

महोदय,

श्री डब्ल्यू॰ हिल्सने आउटलुकको लिखे अपने पत्र में ऐसी बातें कही हैं, जो तथ्योंसे प्रमाणित नहीं होतीं। सम्पादकने किसी ऐसी नीतिका समर्थन नहीं किया है "जिससे ट्रान्सवाल एक परोपजीवी प्रजातिके हाथों में चला जायेगा।" स्वयं श्री हिल्स अप्रत्यक्ष रूपसे स्वीकार करते हैं कि ब्रिटिश भारतीय बहुत उद्यमी और परिश्रमी हैं। ऐसे लोगों की प्रजातिको परोपजीवी कह कर पुकारना न्यायसंगत नहीं है।

श्री हिल्स कहते हैं, एशियाइयोंके प्रति उनका विरोध "रंग-द्वेष-जनित नहीं, बल्कि आर्थिक कारणों से है।" इसके समर्थन में वे सब नेटालवासियोंके अनुभवका उल्लेख करते हैं। अब सब नेटालवासियोंके अनुभवकी जानकारी हासिल करना तो बहुत कठिन है। कुछ लोगोंका अनुभव, जो नेटाली लोगों के प्रतिनिधि भी माने गये हैं, कागजातमें मौजूद है। स्वर्गीय श्री सांडर्स, स्वर्गीय सर हेनरी बिन्स, स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सन, स्वर्गीय श्री एस्कम्ब, वर्तमान उपनिवेश-सचिव श्री मेडन, सर जी॰ एम॰ सटन, सर जेम्स हलेट और अन्य अनेक सज्जनोंने नेटालके भारतीयोंकी उपयोगिताकी साक्षी दी है। स्वर्गीय सर हेनरी बिन्सने एक आयोग के सामने गवाही देते हुए कहा था कि भारतीयोंके प्रवासका खयाल तब किया गया था, जब कि नेटाल दिवालियापनके कगार पर खड़ा था। सर जेम्स हलेटने अभी कुछ ही महीने पहले वतनी मामलोंके आयोगके सामने गवाही देते हुए जोरदार शब्दोंमें कहा था कि नेटालकी समृद्धिका श्रेय भारतीय प्रवासियोंको है और उनके बिना नेटालका काम नहीं चल सकता तथापि, नेटालको भारतीयोंकी जरूरत है, इसके समर्थनमें सबसे बड़ा प्रमाण तो स्वयं श्री हिल्सने ही दिया है। अगर १८९६ से लेकर अब तक यहाँ भारतीयोंकी आबादी दुगुनी हो गई है तो इसका कारण क्या है कारण सिर्फ यह है कि नेटालके मुख्य उद्योगों—अर्थात् चीनी, चाय और कोयलाके उद्योगों—को चालू रखने के लिए अधिकाधिक भारतीयोंकी आवश्यकता प्रकट की जा रही है। याद रखना चाहिए कि श्री हिल्स जिन भारतीयोंका खयाल कर रहे हैं वे बिना बुलाये नहीं आये हैं, बल्कि उपनिवेशके लिए वस्तुतः आमंत्रित किये गये हैं। भारतीय प्रवासी न्यास निकाय (इंडियन इमिग्रेशन ट्रस्ट बोर्ड) के सामने अब भी १८,००० आवेदन पत्र मौजूद हैं, जिनको निबटाना बाकी है। भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंकी उपलब्धिको अपेक्षा माँग बहुत ज्यादा है। वेरुलममें हमेशा भारतीयोंकी बहुत बड़ी आबादी रही है। श्री हिल्स यह खेद व्यक्त करते हुए, कि वह भारतीय नगर बन गया है, यह भूल जाते हैं कि उसके सामने दो ही चारे थे—या तो वह भारतीयोंका नगर बन जाता, या नगर रहता ही नहीं। सबसे ज्यादा

  1. यह पत्र आउटलुकमें "गां॰" के सांकेतिक नामसे १४ मार्चके श्री डब्ल्यू॰ हिल्सके पत्रके साथ छपा था। पत्रके सम्पादकने श्री हिल्सका पत्र "इस विषयके एक विशेष जानकार व्यक्ति" को भेज दिया था। संकेत गांधीजीकी ओर था। पत्र और उत्तर दोनों बादमें इंडियन ओपिनियनमें छपे थे। श्री हिल्सका पत्र यहाँ नहीं दिया गया